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पाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं & pdf download

 

प्रागैतिहासिक युग में मनुष्य ने अपने जीवन यापन के लिए संघर्ष करना पड़ा। उसने अपने आप को जानवरों से बचाने के लिए औजारों का आविष्कार किया मानव द्वारा निर्मित हथियार और औजार पत्थर के थे ,इसलिए मनुष्य की इस आदिम सभ्यता को पाषाण युग की संज्ञा दी जाती है ।पाषाण काल को तीन भागों में बांटा जाता है-

1.       पूर्व पाषाण काल

2.       मध्य पाषाण काल

3.       नवपाषाण काल

1पूर्व पाषाणकाल (Palaeolithic age)

भारत मे पाषाण कालीन मानव का उद्भव लगभग 5,00000 वर्ष पूर्व हुआ ।यद्यपि पूर्व पाषाण काल का कोई भी मानव कंकाल भारत में उपलब्ध नहीं होता ,परंतु प्रोफ़ेसर एचडी सन कालिया, बीडी कृष्णा स्वामी, बकेट आदि विद्वानों का मानना है कि सर्वप्रथम पाषाण सामग्री का उदय मध्य प्लास्टोसीन युग में उत्तर भारत में तथा द्वितीय इंटर प्लूवियल युग में मद्रास में हुआ।

पुरापाषाण काल की मुख्य विशेषताएं (Features of Palaeolithic Age):-

1.       केंद्र-- पुरा पाषाणकालीन मानव के उपकरण पंजाब में सोहन नदी घाटी के (मलकपुर, चौंतरा ,कलार आदि स्थानों )व्यास बाणगंगा नदी घाटी ,उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर एवं इलाहाबाद जिला में सिंगरौली तथा बेलन नदी घाटी कर्नाटक की कृष्णा तुंगभद्रा नदी घाटी ,गुजरात की साबरमती तथा माही नदी घाटी आदि स्थानों से मिलते हैं।

2.       औजार--पुरापाषाण काल का मानव बर्बर था वह जंगली पशुओं के समान जीवन व्यतीत करता था। उसने अपनी रक्षा तथा पशुओं का मांस खाने के लिए पत्थर केभदे बेडोल औजार बनाए। इस युग की प्रथम अवस्था में मानव निर्मित उपकरणों को चौपर चोपिंग पेबुल संस्कृति तथा हेंड हैक्स संस्कृति में रखा जाता है ।पानी के बहाव रगड़ खाकर गोल चिकने पत्थर के टुकड़ों कोपेबुलकहा जाता था।पुरापाषाण काल की दूसरी अवस्था में उपकरण में थोड़ा सुधार हुआ तथा उपकरणों में क्वानृटाइज के साथ-साथ सर चर्ट जैसे मूल्यवान पत्थरो का प्रयोग भी किया गया ।तीसरी अवस्था के उपकरण ब्लेड प्रधान है ।पतले तथा शंकरे आकार वाला पाषाण फलक जिसके दोनों किनारे समानांतर होते हैं तथा लंबाई में चौड़ाई से दुगुना होता है ,ब्लेड कहलाता है। पत्थर के साथ-साथ इस अवस्था में हड्डियों तथा सिंग से बने हुए उपकरण भी मिलते हैं यह औजार चीरने,छीलने, खोदने छेद करने के काम आते थे।

3.       निवास स्थान ––सब सबसे पहले मानव ने घने जंगलों को चुना होगा ।परंतु कालांतर में वह नदियों के किनारे तथा पर्वतों की गुफाओं में रहता था क्योंकि खुदाइयो में अधिकांश पाषाण सामग्री इन स्थानों के समीप मिली है। वह प्रकृति के प्रकोप तथा जंगली पशुओं के भय से बचने के लिए ऐसा करता था।

4.       भोजन–– इस काल मे मानव पूर्णतया प्रकृति जीवि था।कृषि कार्य से अनभिज्ञ होने के कारण वह फल, फूल और कंदमूल खाकर शिकार में मारे गए पपशुओ तथा नदियों एवं झीलों से पकड़ी गई मछलियों से अपना पेट भरता था ।इस काल में अग्नि का आविष्कार ना होने के कारण मनुष्य कच्चा मांस ही खाता था।

5.       वस्त्र एवं आभूषण––प्रारंभ में आदिमानव नंगा रहता था। परंतु सामूहिक जीवन की आवश्यकता तथा गर्मी, सर्दी एवं वर्षा से बचने के लिए उसने वृक्षों की छाल तथा पत्ते पशुओं की खाल से शरीर को ढकना प्रारंभ कर दिया होगा ।पत्थर तथा जानवरों की हड्डियों से निर्मित आभूषण भी उसने पहनने शुरू कर दिए थे।

6.        धार्मिक विश्वास––पुरापाषाण कालीन मानव के हृदय में किसी प्रकार के धार्मिक भावना का उदय नहीं हुआ था ।वह शवों को दफना था नहीं वरन इधर-उधर फेंक देता था उत्खनन मे तो मृतकों की समाधिया मिली है और ना ही उनके दाह संस्कार के अवशेष

7.       जीवन ––इस युग में मानव का प्रमुख व्यवसाय शिकार था ।वह भोजन की तलाश में इधर-उधर घूमता रहता था ।उसने अभी कृषि करना प्रारंभ नहीं किया था।

2 मध्य पाषाण काल(The Middle Stone Age)

हिम युग की लगभग 10000 . पूर्व में समाप्ति के साथ ही  उतार-चढ़ाव वाली विषम जलवायु के कर्म का भी अंत हो गया ।इसके पश्चात जलवायु एवं पारिस्थितिकी में व्यापक परिवर्तन हुआ जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पेड़ पौधों तथा पशु पक्षियों पर भी पड़ा। मानव ने इस बदलते हुए वातावरण के अनुरूप अपने आप को डालने की भरसक कोशिश की ।पुरापाषाण काल एवं नवपाषाण काल के बीच के युग को मध्यपाषाण कालकहते हैं। इसी काल में भी मनुष्य का मुख्य व्यवसाय शिकार ही रहा। परंतु संचयन की पद्धति में व्यापक परिवर्तन हुए बड़े पशुओं के स्थान पर छोटे पशुओं का शिकार किया जाने लगा ।इसी काल में सर्वप्रथम मानव ने कुत्ते को अपना साथी बनाया, क्योंकि इंग्लैंड के स्टारकार नामक पुरास्थल से लगभग 75 ईसवी पूर्व में कुत्ते के शिकार में सहायता करने के  प्रमाण मिलते हैं।

       मध्य पाषाण काल की मुख्य विशेषताएं(Feature of Middle Stone Age):-

1.       काल तथा केंद्र––भारत में इस काल के संस्कृति मोटे तौर पर 10000 . पूर्व  से 4000 . पूर्व तक मानी जाती है। इस काल में जलवायु के अत्यधिक गर्म तथा शुष्क हो जाने के कारण लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना शुगम हो गया। इस काल के अवशेष भारत के लगभग सभी स्थानों विशेष रूप से राजस्थान( भीलवाड़ा, बागोर) महाराष्ट्र (पैठन ,नासिक) आंध्र प्रदेश तमिलनाडु ,मध्य प्रदेश ,पश्चिम बंगाल तथा बिहार के कई स्थानों से मिलते हैं।

2.       औजार ––इस काल में नवीन मानव और नवीन जलवायु के साथ नए प्रकार के औजार बनाए जाने लगे। यह आकार में अत्यंत छोटे हैं ।यह लगभग आधा इंच से लेकर एक इंच तक के हैं ।संभवत किसी लकड़ी या हड्डी के हत्थे में लगाकर काम में लगाए जाते थे। इनमें प्रमुख हैं कुंठित बेधडक पॉइंट ,त्रिकोण अर्धचंद्राकार तथा सुईया आदि।इनको बनाने में चर्ट,जैस्पर आदि कीमती पत्थरों का प्रयोग किया जाता था।


3.       निवास स्थान––इस युग में भी लोग पराए खानाबदोश थे ।अब वह गुफाओं के अतिरिक्त पहाड़ों के समतल भागो ,नदियों ,झीलों के किनारे तथा रेतीले स्थानों पर अस्थाई झोपड़िया बनाकर रहने लग गया था ।वह छोटी-छोटी पहाड़ियों पर भी रहता था ।केवल पश्चिमी पाकिस्तान में कुछ बस्तियों में वह खानाबदोश नहीं था ।मध्य भारत ,गुजरात, तमिलनाडु में अस्थाई तौर पर वह झुंडो (group)में रहता था।

4.       भोजन––इस युग में भी मनुष्य पुरापाषाण युग की भांति पेट भरने के लिए गाय ,भैंस, घोड़े, बैल ,भेड़ ,बकरी, चूहा मछली, मगर आदि का शिकार करता था ।मांस, मछली ,कंदमूल ही उसका भोजन था। गुजरात तथा राजस्थान के कुछ अवशेषों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उसने थोड़ी बहुत कृषि करना भी सीख लिया था तथा अपने अस्तित्व के अंतिम चरण तक वह मिट्टी के बर्तन बनाना भी सीख गया था।

5.       वस्त्र एवं आभूषण––पुरापाषाण काल की तरह वह अब भी पक्षों के छालों तथा पशुओं की खाल से अपने शरीर को ढकता था वह आभूषण पहनने का शौकीन भी बन गया था वह हड्डियो तथा पत्थर के बने आभूषण भी पहनता था।

6.   धार्मिक भावना––इस युग में लोगों का धर्म में विश्वास बड़ा था ।भारत में पहली बार मानव कंकाल इसी युग में मिलने लगते हैं।इस युग में लोगों ने शवों को विधिपूर्वक दफनाना शुरू कर दिया था उत्खनन में अनेक अस्थि पिंजर मिले हैं इनमें से कुछ के सिर पूर्व की ओर और कुछ के पश्चिम की ओर है। इन सब के सिर के पास अनेक प्रकार के पत्थर के औजार मिले हैं ।आश्चर्य की बात है कि अनेक स्थलों के समीप कुत्ते के हंसती पिंजर भी उपलब्ध हुए हैं ।इस युग में लोगों ने शवों को प्राचीन शचर का कुछ धार्मिक महत्व रहा हो।

3.नवपाषाण काल(Neolithic)

नवपाषाण काल (Neolithic) Neo(नया) तथा lithic (पत्थर) सब्द से मिलकर बना है, जिन का शाब्दिक अर्थ हुआ पत्थर के नए उपकरण।आता है इस काल में नई तकनीकी पर आधारित पत्थर के उपकरणों का उदय हुआ सर्वप्रथम 1865 ईस्वी में जॉन लुवक ने उपकरणों की विशेषता के आधार पर नवपाषाण काल के मानदंड निर्धारित किए।

   नवपाषाण काल की मुख्य विशेषताएं(feature of neolithic):-

1.       काल तथा मुख्य केंद्र––भारत में नवपाषाण काल का समय 4000 ईसवी पूर्व से 2000 ईस्वी पूर्व तक माना जा सकता है यद्यपि दक्षिण भारत में मिले पूरा विशेष हो कि कार्बन फोर्टीन तिथि 800 ईसवी पूर्व तक मानी जाती है नवपाषाण युग में तो अधिक ठंड थी उतना ही अधिक गर्मी ऐसी जलवायु में जनसंख्या बढ़ी तथा मनुष्य की बुद्धि का विकास हुआ ।लगभग संपूर्ण भारतवर्ष से नवपाषाण कालीन स्थल उपलब्ध होते हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त उपकरणों एवं रहन सहन में क्षेत्रीय भेद दृष्टिगोचर होते हैं ।नवपाषाण काल के प्रमुख खनिज स्थल है कश्मीर, विंध्य क्षेत्र , कर्नाटक ,आंध्र प्रदेश तमिलनाडु ,असम ,मेघालय ,अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों से मिलते हैं।

2.       औजार––इस काल में मानव ने अपने औजारों में महत्वपूर्ण परिवर्तन के मध्य पाषाण काल की अपेक्षा इन्हें अधिक सुंदर एवं प्रभावशाली बनाया गया इस युग में अधिकतर औजार बढ़िया हरे रंग के ट्रेप पत्थर के बनाए गए हैं। इस काल के हथियारो में प्रमुख हैंकुलारिया, कुदाल , हथौड़े ,चाकू, दराती, आरिया आदि है ।इसके अतिरिक्त लकड़ी एवं हड्डियों के अनेक उपकरण भी प्राप्त हुए हैं।


3.       निवास स्थान––इस काल की महत्वपूर्ण विशेषता थी कि मनुष्य ने खानाबदोश जीवन का परित्याग कर दिया तथा वह स्थाई रूप से घरों में बस रहने लगा  संभवत है यह घर पशुओं की खाल के तंबू थे इसके बाद मानव ने सरकंडे, गारा और घास फूस की झोपड़िया बनाई ।इस प्रकार की झोपड़ियों के चयन महाराष्ट्र में नासिक ,नेवासा आदि स्थानों से मिलते हैं ।बुर्ज होम वह गुफकराल की खुदाई में गड्ढे वाले घरों के प्रमाण मिलते हैं।

4.       भोजन––इस काल में मानव ने कृषि का आरंभ कर दिया था ।अतः अब वह गेहूं, जो, चावल ,मटर ,मसूर, रागी चना ,मूंग आदि कई प्रकार के अनाजों का प्रयोग करने लगा था। पूरा स्थलों से प्राप्त सिल्लोड है इस बात का परिचायक है कि उसने अनाज को पीसकर खाना शुरू कर दिया था ।साथ ही साथ वह मांस ,मछली ,अंडे ,फल-फूल आदि भी खाता रहा ।परंतु बर्तनों एवं अग्नि का आविष्कार हो जाने से उसने मांस को भूनकर या पकाकर खाना शुरू कर दिया था।

5.       वस्त्र––इस काल में मनुष्य ने कपास की सहायता से कपड़े तैयार किए तथा पशुओं की उनसे ऊनी वस्त्र भी बनाए ।अनेक अन्य देशों के बाती भारतीय भी पेड़ पौधों के दर वह तथा धातु रसों की सहायता से अपने वस्त्र रंगने लगा ।कताई और रंगाई के कार्य में शायद इस युग में नारी की प्रमुखता रही होगी।

6.       कृषि का प्रारंभ––इस युग के मानव के सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि थी कृषि का प्रारंभ है यह कहना कठिन है कि यह हल की सहायता से होती थी अथवा नहीं। परंतु अनाज काटने के लिए उसने हंसिए का आविष्कार अवश्य कर दिया था। अनाज पीसने के लिए उसने चक्की का आविष्कार कर लिया था। बुरझाहोम ,चिरांद अन्य स्थानों की खुदाई से हमें गेहूं ,जो ,चावल, मटर, दाल, चना, मूंग आदि अनाजों के उत्पादन का पता चलता है।

7.       पशु पालन––नवपाषाण काल में जलवायु में परिवर्तन होने के कारण वनों का विलाप होने लगा परिणामस्वरूप पशु जंगलों से निकलकर पेट भरने के लिए मानव अवशेषों के निकट रहने लगा मानव और पशु के इस समीप समीप निवास ने ही पशुपालन को जन्म दिया ।अतः इस युग में उसने गाय ,बैल , भैंस , बकरी , घोड़ा और कुत्ता पशुओं को पालना आरंभ कर दिया पशुओं से केवल दूध ,मांस एवं खाल प्राप्त हुए अपितु उनसे खेती तथा यातायात का कार्य भी लिया जाने लगा।

8.       अग्नि का आविष्कार––नवपाषाण काल के मानव की दूसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि थीअग्नि का आविष्कार उसने दो पत्थरों को रगड़कर अग्नि  का ज्ञान प्राप्त कर लिया इस आविष्कार ने मनुष्य के जीवन को और भी अधिक सुरक्षित तथा सुविधाजनक बना दिया अग्नि के सहायता से अपना भोजन पकाने लगा खुदाई में अनेक पकाने के बर्तन उपलब्ध हुए हैं अग्नि का प्रयोग मनुष्य ने जंगली पशुओं को डराने ,मिट्टी के बर्तन पकाने, तथा बढ़िया औजार बढ़ाने के लिए भी किया ।उसने जंगलों को साफ करके कृषि योग्य भूमि भी बनाई।


9.       पहिए का आविष्कार––नवपाषाण युग का सबसे क्रांतिकारी आविष्कार पहिया की खोज था इस आविष्कार ने मानव जीवन को आधुनिक समाज की दहलीज पर ला खड़ा किया   इसकी सहायता से मिट्टी के बर्तन तेजी से बढनने लगे ।पहिए के साथ से उसने माल ढोने के लिए गाड़ियां बनाई तथा वहीं गाड़ियों की सहायता से शीघ्र ता पूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता था।

10.   धार्मिक विश्वास––इस युग में संभवत मानव ने दानवे और देवी शक्तियों की कल्पना कर ली थी और उन्हें प्रसन्न करने के लिए अनेक प्रकार के अनुष्ठान करता था इस प्रकार अंधविश्वास और धर्म की भावनाओं का उदय इस युग में हो गया था उत्खनन से पता चलता है  कि मानव अपने सवो को जलाता भी था और दफनाता भी था। 

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             1 प्रागैतिहासिक काल का अर्थ....

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