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कौटिल्य का अर्थशास्त्र (Kautilya ka arthashastra in hindi)

 

कौटिल्य का अर्थशास्त्र (Kautilya ka arthashastra)

मौर्यवंश के बारे में जानने के लिए अर्थशास्त्र सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इसके रचनाकार चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री चाणक्य या विष्णुगुप्त या कौटिल्य थे। चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाने में मुख्य भूमिका उसी की थी। उसके द्वारा लिखित यह ग्रन्थ राजनीतिशास्त्र' का ग्रन्थ है। इसमें राजा के कर्तव्यों, मंत्रियों के गुणों, गुप्तचर व्यवस्था, कूटनीति, युद्ध विधियों, शासन प्रणाली के सिद्धांतों, कर व्यवस्था आदि राजनीति के सिद्धांतों का विवरण मिलता है। यह ग्रन्थ हिन्दू राजशासन के ऊपर प्राचीनतम उपलब्ध रचना है। संस्कृत में लिखित इस ग्रन्थ को 15 भागों तथा 180 उपभागों में बांटा गया है। इसमें 6000 श्लोक हैं।

                                इसका रचना काल 321 ई.पू. से 296 ई.पू. माना जाता है। इस पुस्तक की खोज 1905 ई. में हुई थी तथा इसका अंग्रेजी अनुवाद डॉ. आर. शाम शास्त्री ने किया। अनेक लेखकों ने अर्थशास्त्र की तुलना मैकियावली के ग्रन्थ 'दी प्रिन्स' से की है। दुर्भाग्यवश अर्थशास्त्र' के रचना काल तथा उसके रचयिता' के बारे में बड़ा भारी मतभेद रहा है। डॉ. आर.सी. मजूमदार ने लिखा है कि, “यह किसी एक व्यक्ति की रचना नहीं है वरन राजनीतिज्ञों के समूह की रचना है तथा उसकी रचना तीसरी शताब्दी ई. पू. में नहीं हुई। उनके अनुसार इसका वर्तमान रूप सम्भवतः तीन चार शताब्दियों पश्चात् का है। प्रो. एस.सी. राय चौधरी भी अर्थशास्त्र को मौर्य काल का ही नहीं मानते।


'अर्थशास्त्र' से हमें निम्न विषयों की जानकारी मिलती है-

(i) राजा के संबंध में (About the King)-

'चाणक्य' लिखता है कि राजा को वीर एवं योद्धा होना चाहिए। वह खूब पढ़ा-लिखा होना चाहिए। उसे वेदों, शास्त्रों, राजनीति, दर्शन आदि का ज्ञान होना चाहिए। उसे अपने पास एक विशाल सेना रखनी चाहिए तथा हमेशा राज्य विस्तार का प्रयत्न करना चाहिए। राजा को अपने सैनिकों में इस बात का प्रचार करना चाहिए की युद्ध धर्म की रक्षा के लिए लड़ा जा रहा है, जिससे सैनिकों में उत्साह बढ़े। युद्ध में सफलता प्राप्त करने के लिए सभी तरह की कूटनीति से काम लिया जाना चाहिए। राजा के अधिकार तथा शक्तियां असीमित होनी चाहिए। उसे शासन कार्यों के लिए मंत्रिपरिषद् का गठनकरना चाहिए, परंतु राजा को मंत्रियों के हाथों की कठपुतली नहीं बनना चाहिए। कौटिल्य ने 'प्रजा की भलाई को ही राजा का आदर्श' बताया है। राजा को कठोर परिश्रम करते हुए हमेशा प्रजा के कार्यों में लगा रहना चाहिए। राजा को अपनी प्रजा के कष्टों को दूरकरने का हरसम्भव प्रयास करना चाहिए। राजा को आलसी नहीं होना चाहिए, क्योंकि उसको देखकर प्रजा भी आलसी हो जाती है। उसने राजा को छः प्रकार के दोषों- -काम, क्रोध, अहंकार, लोभ, चापलूसी और विलासिता से दूर रहना चाहिए, क्योंकि ये राजा केचरित्र एवं व्यक्तित्व के पतन का कारण बन सकते हैं। राजा को अपनी सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। केवल कर्तव्यपरायण तथा निष्ठावान लोगों को ही उसे अपना अंगरक्षक बनाना चाहिए।

(ii) मंत्रियों के संबंध में (About theMinisters) :-

कौटिल्य ने प्रशासनिक कार्यों में सहयोग के लिए मंत्रिपरिषद् की उपयोगिता पर जोर डाला है। वह लिखता है, अकेला राजा शासन को उसी प्रकार नहीं चला सकता जिस प्रकार एक पहिया गार्ड को नहीं चला सकता।" राजा को वीर, बुद्धिमान, कर्तव्यपरायण एवं निष्ठावान लोगों को ही मंत्रिमण्डल में रखना चाहिए। व्यावहारिक रूप से राजा को निरंकुश रहना चाहिए तथा मंत्रियों की सलाह मानने के लिए, मजबूर नहीं होना चाहिए। कौटिल्य ने मंत्रिपरिषद की गुप्त बैठकों' के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला है। वह लिखता है कि राजा को ऐसे स्थान पर बैठकें करनी चाहिए, जहां चिड़िया भीन जा सके। राजा तथा मंत्रियों के अतिरिक्त किसी और को राज्य के रहस्यों का पता नहीं चलना चाहिए। वह कहता है कि, “ऐसा राज्य जो अपने रहस्यों को छुपाकर नहीं रख सकता, अधिक दिनों तक नहीं चल सकता।"

(iii) गुप्तचर विभाग के संबंध में (About the Spies)-

कौटिल्य ने राज्य की सुरक्षा और स्थिरता के लिए सुसंगठित गुप्तचा विभाग की उपयोगिता पर बल दिया है। वह लिखता है कि राजा को योग्य, तर्कशील एवं ईमानदार, उच्च घरानों से संबंधित कर्तव्यपरायण एवं निष्ठावान तथा वाणी कुशल गुप्तचर रखने चाहिए। गुप्तचरों के कारण राजा राज्य में होने वाली प्रत्येक घटना की जानकारी रख सकता है। गुप्तचरों को राजकीय कर्मचारियों, मंत्रियों, सेना के अधिकारियों, महत्त्वपूर्ण सैनिक अड्डों, मुख्य मार्गों, कारखाना एवं भीड़भाड़ वाले स्थानों पर नियुक्त किया जाना चाहिए, ताकि हर प्रकार की सूचनाएँ राजा को मिल जाएँ। वह लिखता है कि पुरुष की अपेक्षा महिलाएँ इस कार्य में ज्यादा सक्षम हो सकती हैं। चन्द्रगुप्त बड़े योग्य थे तथा उन्हें अच्छा वेतन दिया जाता था। गुप्तचर व्यवस्था के कारण ही चन्द्रगुप्त अपने विशाल राज्य में शांति एवं व्यवस्था स्थापित कर सका था।

(iv) स्थानीय प्रशासन (Local Administration)-

'अर्थशास्त्र' से पता चलता है कि शासन को सुचारु रूप से चलान के लिए प्रत्येक राजा को अपने साम्राज्य को प्रान्तों, जिलों एवं नगरों में बांट देना चाहिए। इन प्रान्तों में 'कुमारों की नियुक्ति का जानी चाहिए। जो प्रायः राजपरिवार या उच्च घरानों से संबंधित होने चाहिए। नगर का शासन चलाने के लिए नगर परिषद् के गानतथा उसकी कार्य प्रणाली की भी कौटिल्य ने चर्चा की है। अर्थशास्त्र में ग्राम के मुखिया का भी स्थान-स्थान पर विवरण मिलता है।

(v) वित्तीय व्यवस्था के बारे में (About Financial Administration)-

अर्थशास्त्र में इस बात पर बल दिया गया है कि आर्थिक तंगी नहीं होनी चाहिए क्योंकि निर्धनता ही विद्रोहों को जन्म देती है। गरीब लोग ही खिन्न होकर राज्य के शत्रओं के साथ राजा को अपनी जनता प्रजा की आर्थिक अवस्था को सुधारने का हर सम्भव प्रयास करना चाहिए। राज्य में किसी भी प्रकार निर्धनता खान जाते हैं जो राज्य को खतरा पैदा कर सकते हैं। अतः कौटिल्य ने दाम बनाए काम' वाली उक्ति पर विशेष बल दिया था। वह माता है कि राजा को वित्तीय प्रबंध की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। उसे राजकीय कोष में हर सम्भव बढ़ोत्तरी का प्रयास करना जाहिए। इसके लिए कौटिल्य ने भूमिकर को राज्य की आमदनी का महत्त्वपूर्ण साधन माना है। वह इसकी दर 1/6, व्यापार का 1/10 वा अन्य करों की भी चर्चा करता है। राजा को शाही टकसाल से सिक्के भी जारी करने चाहिए।

(vi) सैनिक प्रबंध (Military Administration)-

कौटिल्य ने राज्य की सुरक्षा के लिए एक विशाल सेना के गठन पर बल दिया है। उसके अनुसार राजा को हमेशा अपने साम्राज्य विस्तार में लगे रहना चाहिए। युद्ध से पूर्व उसे अपने शत्रु की सेना का सीक-ठीक अनुमान लगा लेना चाहिए। उसे युद्ध से पहले अपनी राजधानी की सुरक्षा का प्रबंध कर लेना चाहिए तथा युद्ध से उत्पन्न खतरों से बचने के लिए पहले ही व्यवस्था कर लेनी चाहिए। युद्ध के समय सभी वर्गों को राष्ट्र की सुरक्षा में लगा देना चाहिए। शत्रु सेना को विजय के बाद पूर्णतया समाप्त कर देना चाहिए। कौटिल्य ने कहा है कि सेना में पैदल, घुड़सवार, हाथी तथा रथ होने चाहिए। उसने जल सेना' की उपयोगिता की भी चर्चा की है जो राज्य के व्यापारिक जहाजों तथा बंदरगाहों की सुरक्षा कर सके। उसने सैनिकों का उत्साहवर्धन करने के लिए उन्हें पुस्कार दिए जाने की भी वकालत की है।

(vii) दण्ड विधान (Punishment)-

'अर्थशास्त्र' में कठोर दण्ड विधान का वर्णन मिलता है। कौटिल्य ने चोरी करने, सरकारी नियमों को तोड़ने वालों एवं देशद्रोह को गम्भीर अपराध माना है तथा इनके लिए मृत्युदण्ड की सजा को उचित बताया है। यह अपराधियों व आम जनता में भय उत्पन्न करने के लिए घोर यातनाओं पर भी बल देता है। उसने 18 प्रकार की घोर यातनाओं का उल्लेख किया है। उसने ब्राह्मणों को मृत्युदण्ड न देने की सलाह दी है। ब्राह्मणों के लिए उसने सामाजिक बहिष्कार एवं खानों में काम करवाने की सजा देने को कहा है।

(viii) सरकारी कर्मचारियों के वेतन (Salaries of Govt. Employes)-

कौटिल्य ने 18 विभागों तथा उनमें काम करने वाले 36 प्रकार के प्रादेशिकों, रज्जुकों (नौकरशाही) की चर्चा की है। कौटिल्य से मंत्रिपरिषद् एवं मंत्रियों के वेतन का भी आभास मिलता है। सबसे बड़े अधिकारी को 48000 पण प्रतिवर्ष तथा सबसे छोटे अधिकारी को 60 पण प्रतिवर्ष के वेतन का विवरण मिलता है। बी.ए. स्मिथ ने एक पण को एक शिलिंग के समान माना है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र एक अमूल्य ग्रन्थ है, जिससे मौर्य प्रशासन, तत्कालीन राजनीति व समाज का स्पष्ट बोध होता है।

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