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कनिष्क तथा बौद्ध धर्म की महायान शाखा (KANISHKA AND MAHAYAN BUDDHISM in hindi)

 

कनिष्क तथा बौद्ध धर्म की महायान शाखा  (KANISHKA AND MAHAYAN BUDDHISM)

Content

महायान शाखा की उत्त्पति के कारण

प्रमुख सिद्धांत (Main Principles of Mahayanism)

महायान का महत्त्व (Importance of Mahayan)

बौद्ध धर्म की महायान शाखा का उदय कनिष्क के शासनकाल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना है। इस शाखा का उदय बौद्ध धर्म की बुराइयों को दूर करने के लिए तथा इस धर्म के अनुयायियों द्वारा समयानुसार परिवर्तन की मांग के कारण हुआ। जब भागवत धर्म दिन-प्रतिदिन प्रबल होने लगा तो बौद्धधर्म के अस्तित्व के लिए धर्म में परिवर्तन लाना आवश्यक हो गए थे। अतः ऐसे समय  में कनिष्क के द्वारा 'नागार्जुन' के कहने पर बौद्ध धर्म में कुछ सुधार किये गये परन्तु कट्टर बौद्ध विद्वानों ने इन सुधारों को मानने से । इन्कार कर दिया। ऐसे लोगों के संघ को हीनयान' कहा जाने लगा जिसका शाब्दिक अर्थ है-छोटा चक्र। बौद्ध धर्म का सुधारवादी सम्प्रदाय 'महायान' कहलाया जिसका शाब्दिक अर्थ है-बड़ा चक्र। इसने पर-सेवा तथा परोपकार पर विशेष बल दिया तथा महात्मा बुद्ध की पूजा होने लगी। महायान' को उत्तरी बौद्ध धर्म के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि महायान का प्रचार-प्रसार उत्तरी देशों चीन, जापान व तिब्बत में हुआ जबकि हीनयान' को दक्षिणी बौद्ध धर्म के नाम से जाना गया, क्योंकि इसका प्रसार भारत, लंका, नेपाल, बर्मा आदि दक्षिणी एशियाई देशों में हुआ।

महायान शाखा की उत्त्पति के निम्नलिखित कारण थे-

(i) विदेशी धर्मों का प्रभाव :- डॉ. वी.ए. स्मिथ का विचार है कि जब बौद्ध धर्म भारत की सीमाओं को पार करके अन्य देशों में पहंचा तो उस पर अन्य देशों के विभिन्न धर्मों का प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म के प्राचीन तथा मूल रूप में परिवर्तन । हुए तथा महायान शाखा का जन्म हुआ।

(ii) विदेशी आक्रमणों का प्रभाव (Effect on Foreign Attacks) :- मौर्यों के पतन के पश्चात् भारतवर्ष पर निरन्तर विदेशियों। के आक्रमण हुए। इन आक्रमणकारियों में से बहुत ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। उनके प्रभाव से बौद्ध धर्म के मूल रूप में का परिवर्तन हो गया। विदेशी तत्त्वों से मिलकर बौद्ध धर्म जब नये रूप में आया तो उसे महायान का नाम दिया गया।

(iii) हिन्दू धर्म में प्रचलित मूर्ति पूजा का प्रभाव (Effect of ldol Worship in Hinduism) :-  भारत में उस समय कई धर्मों में विशेष रूप से हिन्दू में मूर्ति पूजा की जाती थी। बौद्ध धर्म में मूर्ति पूजा निषेध थी। विण्टरनित्ज आदि विद्वानों का विचार है कि भागवत गीता के भक्ति मार्ग के प्रभाव के कारण ही बौद्ध धर्म की महायान शाखा का उदय हुआ। अन्य धर्मों के लोगों को  मूर्ति पूजा करते देख बौद्धों ने भी महात्मा बुद्ध की पूजा करनी शुरू कर दी। इस प्रकार बौद्ध धर्म में परिवर्तन होने लगे।

(iv) महात्मा बुद्ध के प्रति श्रद्धा (Faith in Buddha) :- महात्मा बुद्ध के प्रति उनके अनुयायियों की असीम श्रद्धा के कारण मृत्यु के पश्चात् उनके अनुयायियों ने महात्मा बुद्ध की पूजा करनी शुरू कर दी। डॉ. ए.एल. बाशम के अनुसार, “बौद्धों में यह भावना जागृत हो गई कि महात्मा बुद्ध साधारण मनुष्य नहीं वरन् भगवान के अवतार थे। अतः वे उनकी पूजा करने लगे। इस प्रकार महायान सम्प्रदाय का जन्म हुआ।

(v) नागार्जुन का प्रभाव (Influenced Nagarjuna) :- महायान सम्प्रदाय की उत्पत्ति में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् नागार्जुन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने प्राचीन बौद्ध धर्म को जोरदार तरीके से विरोध किया तथा इसमें सुधारों की मांग की। नागार्जुन ने  प्रचलित बौद्ध धर्म की बुराइयों को दूर करके नयी शाखा की स्थापना की।

(vi) चतुर्थ बौद्ध सभा (Fourth Buddhist Council) :- बौद्ध धर्म और उसकी मान्यताओं को लेकर संघ में गहरे मतभेद उत्पन्न होने के कारण कनिष्क के काल में बौद्धों की चौथी महासभा का आयोजन किया गया। वसुमित्र ने इस सभा की अध्यक्षता की तथा इसमें 500 बौद्ध भिक्षुओं ने भाग लिया। सभा में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों पर गहराई से वाद-विवाद हुआ। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म के मूल स्वरूप में परिवर्तन हुआ जो महायान के नाम से जाना गया। के

प्रमुख सिद्धांत (Main Principles of Mahayanism)

कनिष्क के शासन काल में विकसित बौद्ध धर्म की शाखा को महायान' कहा गया जबकि बौद्ध धर्म की मूल शाखा 'हीनयान' कहलाई। इन दोनों के मूल सिद्धांतों में काफी अन्तर है। महायान शाखा हिन्दू धर्म के काफी निकट है। इस शाखा के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं-

(i) महात्मा बुद्ध को देवता मानना-महायान शाखा में महात्मा बुद्ध को एक देवता मान लिया गया तथा उसकी पूजा की जाने लगी जबकि हीनयान में महात्मा बुद्ध को केवल एक महापुरुष माना था।

ii) बोधिसत्वों में विश्वास महायान में बोधिसत्वों की पूजा भी प्रारम्भ हो गई। बोधिसत्व उस व्यक्ति को कहा जाता था जिसने ज्ञान प्राप्त कर लिया हो किन्तु यह निर्वाण को इसलिए स्वीकार नहीं करता ताकि वह मनुष्यों को निर्वाण प्राप्त करने में सहायता कर सके। महायान को बोधिसत्वों का धर्म' कहा जाता है। हीनयानियों का बोधिसत्वों में विश्वास नहीं था।

(iii) स्वर्ग में विश्वास-महायान शाखा में निर्वाण' की अपेक्षा 'स्वर्ग' को जीवन का अन्तिम उद्देश्य माना गया है।

(iv) मूर्ति पूजा-महायान शाखा में हिन्दु धर्म की तरह मूर्ति-पूजा में विश्वास व्यक्त किया गया। महात्मा बुद्ध तथा अन्य बोधिसत्वों की अनेक सुन्दर मूर्तियां बनाई गईं तथा उनकी पूजा की जाने लगी। तथा उन्होंने अपने शिष्यों को केवल 'अष्ट मार्ग' पर चलने को कहा था, परन्तु 'महायान' में आगामी जीवन को सुधारने के लिए।

(v) आत्मा व पुनर्जन्म में विश्वास-महायान आत्मा एवं पुनर्जन्म में विश्वास करता है। महात्मा बुद्ध आत्मा के बारे में मौन थे। पूजा-पाठ एवं प्रार्थना में विश्वास व्यक्त किया गया।

(vi) प्रार्थनाओं में विश्वास-महायान में हिन्दू धर्म की तरह महात्मा बुद्ध एवं अन्य बोधिसत्वों की मूर्तियों के आगे प्रार्थनाएँ आरम्भ कर दीं। इसमें पवित्र बौद्ध ग्रन्थों का वेदों की तरह पाठ किया जाने लगा जबकि हीनयान में 'अष्ट मार्ग' पर टी विश्वास किया गया।

(vii) संस्कृत में प्रचार-हीनयान शाखा ने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए लोगों की बोलचाल की भाषा पाली एवं प्राकृत का प्रयोग किया था। उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ 'त्रिपिटक' भी पाली भाषा में ही लिखे गये थे, परन्तु महायान शाखा ने पाली के स्थान पर संस्कृत को अपनाया। महायान शाखा के सभी प्रसिद्ध विद्वान् अश्वघोष, नागार्जुन, वसुमित्र आदि संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे तथा उनके द्वारा रचित महायान शाखा के सभी प्रसिद्ध ग्रन्थ संस्कृत में लिखे गये

(viii) सरल सिद्धांत-हीनयान की साधन पद्धति अत्यधिक कठोर थी तथा वह भिक्षु जीवन का हिमायती था, परन्तु महायान के सिद्धांत सरल एवं सर्वसाधारण के लिए सुलभ हैं। यह एक गृहस्थ धर्म है जिसमें भिक्षुओं के साथ-साथ साधारण उपासकों को भी स्थान दिया गया। इस प्रकार महायान में व्यापकता एवं उदारता है। जापानी बौद्ध विद्वान् डी.टी. सुजुकी के शब्दों में, “महायान ने बुद्ध की शिक्षाओं के आन्तरिक महत्त्व का खण्डन किये बिना बौद्ध धर्म के मौलिक क्षेत्र को विस्तृत कर दिया।

महायान का महत्त्व (Importance of Mahayan)

बौद्ध धर्म के इतिहास में महायान शाखा के उदय का विशेष महत्त्व है। इसका महत्त्व निम्न प्रकार है-

(i) महायान सम्प्रदाय के विकसित हो जाने पर बौद्ध धर्म तत्कालीन परिस्थितियों से प्रभावित होकर भक्तिवादी, अवतारवादी तथा मूर्तिवादी बन गया। परिणामस्वरूप लोग इसके सिद्धांतों की तरफ बड़ी संख्या में आकर्षित हुए तथा बौद्ध धर्म की लोकप्रियता बढ़ गई।

(ii) महायान शाखा में मूर्ति पूजा पर बल दिये जाने के कारण कलाकारों में महात्मा बुद्ध तथा अन्य बोधिसत्वों की सुन्दर मूर्तियां बनाई जिसके परिणामस्वरूप 'गांधार कला' तथा 'मथुरा कला' का उदय हुआ।

(iii) भारतीय सीमा के बाहर बौद्ध धर्म के प्रचुर प्रचार का श्रेय महायान को ही जाता है क्योंकि यह सम्प्रदाय बौद्ध धर्म का प्रगतिशील एवं सुधारवादी सम्प्रदाय सिद्ध हुआ।

(iv) महायान शाखा के उदय ने संस्कृत साहित्य को अत्यधिक विकसित किया। क्योंकि महायान शाखा के अनेक विद्वानों ने संस्कृत में प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना की।

(v) महायान शाखा के उदय से बौद्ध धर्म में विभाजन हो गया तथा यह दो भागों हीनयान एवं महायान में बँट गया। इस विभाजन के बाद धर्म में फूट पड़ गई तथा धीरे-धीरे यह धर्म अनेक शाखाओं में विभाजित हो गया तथा अन्ततः भारत में लुप्त हो गया।

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