डॉ. राय चौधरी का कथन है कि, "भारतीय इतिहास में कनिष्क की प्रसिद्धी उसकी विजयों के कारण नहीं, अपितु शाक्य मुनि के धर्म को (बौद्ध धर्म) संरक्षण प्रदान करने
के कारण हैं। कनिष्क के
सिक्कों एवं पेशावर के अभिलेख तथा साहित्यिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि
प्रारम्भ में कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी नहीं था। संयुक्त त्रिपिटक से ज्ञात
होता है कि प्रारम्भ में कनिष्क भी
अशोक की भांति रक्त
पिपासु था, किन्तु बौद्ध धर्म ग्रहण
करने के पश्चात् उसने पश्चाताप किया तथा वह बहुत उदार तथा दयालु बन गया परन्तु बौद्ध
लेखकों के प्रकार के विवरण अधिकांशतः काल्पनिक हैं। कनिष्क कब और किन परिस्थितियों
में बौद्ध धर्म को ग्रहण किया। इस विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। ऐसा
प्रतीत होता है कि मगध पर आक्रमण के समय वह बौद्ध भिक्षु अश्वघोष के सम्पर्क में
आया। इसके प्रभाव में आकर उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। इसकी पुष्टि ह्वेनसांग के विवरण, राजतरंगिणी
तथा तारानाथ के विवरण से भी होती है। इनके अलावा कनिष्क द्वारा
निर्मित मठ, विहार एवं स्तूप
इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि उसने
बौद्ध धर्म अंगीकार कर
लिया था। बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद कनिष्क ने भी अशोक की तरह बौद्ध धर्म के
प्रचार एवं प्रसार के अनेक प्रयास किए। कनिष्क ने बौद्ध धर्म के प्रचार एवं
प्रसार के लिए निम्न कार्य किए-
1. चौथी बौद्ध सभा (Fourth Buddhist Council) :- बौद्ध धर्म में उत्पन्न साम्प्रदायिक तत्त्वों को मिटाने व बौद्ध धर्म का प्रामाणिक साहित्य तैयार करवाने के लिए कनिष्क ने अपने गुरु पार्श्व की अनुमति से बौद्धों की चौथी महासभा का आयोजन किया। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि यह सभा जालन्धर में आयोजित की गई थी परन्तु अधिकांश इतिहासकार इस सभा का आयोजन का स्थल कुण्डलवन कश्मीर को मानते हैं। इस महासभा में 500 बौद्ध भिक्षुओं ने भाग लिया। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र ने इसकी अध्यक्षता की। वसुमित्र के अलावा अश्वघोष, नागार्जुन, पार्श्व तथा अग्निमित्र जैसे विद्वानों ने इस सभा में भाग लिया। यह महासभा 6 मास तक चलती रही तथा इसमें सम्पूर्ण बौद्ध साहित्य की सूक्ष्मता से जांच की गई। एक ग्रन्थ के रूप में संकलित करके इसे 'महाविभाष' नाम दिया गया। इस ग्रन्थ को बौद्ध धर्म का विश्वकोष (Encyclopaedia of Buddhism) कहा जाता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इस सभा के बाद बौद्ध मत की नई शाखा महायान का उदय हुआ तथा उसे राजकीय संरक्षण प्रदान किया गया।
2. बौद्ध धर्म में समयानुसार परिवर्तन (Changes in Buddhism according to time) :- कनिष्क द्वारा बौद्ध धर्म में व्यापक परिवर्तन कर देना भी सराहनीय कदम था। मौर्यान्तर काल के बाद बौद्ध धर्म काफी नीरस हो गया था क्योंकि ब्राह्मण धर्म में भक्तिभाव तथा पूजा आदि के कारण लोग ब्राह्मण धर्म की तरफ आकृष्ट हो रहे थे। ऐसे समय में कनिष्क ने अश्वघोष जैसे विद्वान् ब्राह्मण की सहायता से बौद्ध धर्म में व्यापक परिवर्तन किये तथा इसमें भक्ति भावना एवं बोधिसत्वों की पूजा आरम्भ हुई। इसमें कई विदेशी तत्त्वों का भी समावेश हुआ व इसकी विचारधारा में भी परिवर्तन हुआ। धर्म की यह नई विचारधारा महायान धर्म के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसके सिद्धान्त सरल थे जिनका पालन जनसाधारण व एक गृहस्थ व्यक्ति भी सरलतापूर्वक कर सकता था। महात्मा बुद्ध तथा अन्य बोधिसत्वों की मूर्तियाँ बनाकर उनकी पूजा आरम्भ कर दी गई। महात्मा बुद्ध को ईश्वर का अवतार मान लिया। गया तथा 'निर्वाण' की अपेक्षा 'स्वर्ग' को जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य बताया गया। अतः इस शाखा के उदय से बौद्ध धर्म का विकास तेजी से हुआ।
3. विदेशों में प्रचारक (Prechers in the Foreign) :- कनिष्क अशोक की भांति बौद्ध धर्म का प्रचारक था। कनिष्क ने विदेशों में बौद्ध धर्म को लोकप्रिय बनाने के लिए चीन, जापान, तिब्बत आदि देशों में अनेक प्रचारक भेजे। इन प्रचारकों ने इन देशों के लोगों पर जादुई प्रभाव डाला तथा अनेक लोगों को बौद्ध धर्म में शामिल किया। इन्हीं प्रचारकों का परिणाम था कि आज भी हम देशों में अनेक बौद्ध अनुयायी हैं। प्रो. एन.एन. घोष ने लिखा है कि, “अशोक ने जिस प्रकार हीनयान धर्म को फैलाने में राजकीय सहायता प्रदान की उसी प्रकार कनिष्क ने महायान धर्म को फैलाने के लिए राजकीय सहायता दी।
4. बौद्ध विहारों का निर्माण (Construction of Buddhist Vihar) :- कनिष्क ने बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए पेशावर ,तक्षशिला, मथुरा, कश्मीर आदि स्थानों पर अनेक स्तूपों एवं विहारों का निर्माण करवाया। इनमें भारी संख्या में बौद्ध भिक्षु रहते थे। ये बौद्ध धर्म का प्रचार कार्य करते थे। इसके अतिरिक्त ये विहार एवं मठ शिक्षा के भी केन्द्र थे। परिणामस्वरूप लोगों को बौद्ध धर्म के अधिक से अधिक निकट आने का अवसर प्रदान हुआ।
5. कला द्वारा प्रचार (Preaching through arts) :- कनिष्क ने कला के माध्यम से भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया। उसने अनेक स्तूप, मठ विहारों आदि का निर्माण करवाया। उसके शासनकाल में महात्मा बुद्ध की अति सुन्दर मूर्तियाँ बनाई गईं तथा इन मूर्तियों के द्वारा महात्मा बुद्ध के जीवन से संबंधित विभिन्न घटनाओं को बड़े सुन्दर ढंग से दर्शाया गया। यूनानी चित्रण शैली तथा - भारतीय विचारों के मेल के परिणामस्वरूप कनिष्क के शासन काल में 'गांधार कला शैली' का विकास हुआ। इस शैली के महात्मा बुद्ध के जन्म, गृहत्याग, घोर तपस्या, ज्ञान प्राप्ति एवं निर्वाण से संबंधित सुन्दर एवं मनोहारी मूर्तियों द्वारा लोगों में बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षण उत्पन्न हुआ।
6. साहित्य द्वारा प्रचार (Preaching through literature) :- कनिष्क ने साहित्य के माध्यम से भी बौद्ध धर्म का प्रचार करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। वह साहित्य का अनुरागी एवं साहित्यकारों का आश्रयदाता भी था। उसकी राजसभा में अश्वघोष, नागार्जुन तथा वसुमित्र जैसे प्रसिद्ध विद्वान थे। इन विद्वानों ने बुद्धचरित, सौंदरानन्द, सूत्रालंकर, सारिपुत्रप्रकरण, वज्रसूची, माध्यमिक सूत्र, महाविभाष इत्यादि अनेक बौद्ध काव्यों, नाटकों एवं अन्य ग्रन्थों की रचना की। इन ग्रन्थों को पढ़ने से लोगों के मन में बौद्ध धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई तथा वे लोग इस धर्म की तरफ आकृष्ट हुए।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि कनिष्क ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए काफी प्रयास किये। इनके परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म उन्नति की चरम पर पहुंच गया तथा उसने बौद्ध धर्म को एक नई दिशा भी प्रदान की। इस कारण बौद्ध धर्म के इतिहास में उसको ‘दूसरा अशोक' भी कहा जाता है। डॉ. राधाकृष्ण चौधरी के अनुसार, "अशोक के बाद बौद्ध धर्म के इतिहास में कनिष्क का ही सर्वश्रेष्ठ स्थान है।
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