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मेगस्थनीज और उसकी इंडिका का विवरण(the indica of megasthnese in hindi)

 
मेगस्थनीज और उसकी इंडिका का विवरण

मेगस्थनीज एक ग्रीक इतिहासकार और विद्वान था जो कि सेल्युकस के राजदूत के रूप में चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था। माना जाता है कि मेगस्थनीज लगभग 5 साल तक महाराज चंद्रगुप्त के दरबार में राजदूत रहा। ये समय 302 से 298 ईसापूर्व के बीच का था। मेगस्थनीज सेल्युकस निकेटर द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की राज्य सभा में भेजा गया।यह यूनानी राजदूत था।इसके पूर्व वह आरकोसिया के क्षत्रप के दरबार में सेल्युकस का राजदूत रह चुका था। संभवतः वह ईसा पूर्व 304 से 299 के बीच किसी समय पाटलिपुत्र की सभा में उपस्थित हुआ था।


मेगस्थनीज की इंडिका

मेगस्थनीज़ ने अपनी 'इंडिका' नामक पुस्तक में अपने समय के भारत के बारे में काफी कुछ लिखा है। दुर्भाग्य से इस पुस्तक की मूल प्रति अब उपलब्ध नहीं है लेकिन बाद के इतिहासकारों के लेखन में हवाले के रूप में उसकी पुस्तक के काफी सारे अंश मिलते है। हालांकि इन वर्णनों की सत्यता पर संदेह है, लेकिन इन्हें एकदम से ठुकराया नहीं जा सकता। मेगस्थनीज़ का भारत वर्णन मेगस्थनीज़ का जन्म 350 ईसापूर्व में हुआ था और वो लगभग 46 साल की उम्र में भारत आया था। मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र तक पहुँचने के लिए उसे ईरान से काफी लंबा सफर तय करना पड़ा था। रास्ते में वो पंजाब में भी रुका था जिसका वर्णन भी उसने थोड़ा बहुत किया है।

1) राजा के बारे में

मेगस्थनीस सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के निजी जीवन काविस्तृत विवरण देता है। वो बताता है कि राजा की रक्षा के लिए महिला अंगरक्षिकाएं हुआ करती थी। उसे हर समय अपने जीवन का भय लगा रहता था इसलिए वो कभी लगातार दो दिन एक ही कमरे में नही सोता था। राजा सारा दिन काम में लगा रहता था।राजा ज्यादातर समय राज महल में ही रहता था और केवलयुद्ध, न्यान, यज्ञ और शिकार के समय ही बाहर जाया करताथा। वो शिकार का बड़ा शौकीन था और दूर-दूर तक हाथीपर चढ़कर शिकार किया करता था। जिस रास्ते से उसेजाना होता था, उसके दोनों और रस्से लगा दिए जाते थे।अगर कोई इन रस्सों को पार करता था, तो उसे मृत्युदंडदिया जाता था।राजा मोतियों से जड़ी हुई सोने की पालकी में बैठकर प्रजाको दर्शन दिया करता था। इस समय उसने मलमल के कपड़ेधारण किए होते थे, जो सुनहरी और बैंजनी रंग के धागों सेकढ़े होते थे। राजा को जब थोड़ी यात्रा करनी होती थी तबवह घोड़े की सवारी करता था और जब उसे दूर की यात्राकरनी होती थी तब वह हाथी की सवारी करता था।

2) पाटलिपुत्र के बारे में

पाटलिपुत्र के बारे में वो कहता है कि यह नगर समानांतर चतुर्भुज (Parallelogram) के आकार जैसा है जो लंबाई में लगभग 15 किलोमीटर और चौड़ाई में 3 किलोमीटर है। यह भारत का सबसे बड़ा शहर है जो गंगा और सोन नदी के संगम पर बसा हुआ है। शहर के चारों और एक लकड़ी की दीवार है जिसमें तीर छोड़ने के लिए बड़े छेद बने इस दीवार के 64 द्वार और 570 बुर्ज(मीनारें) हैं। पाटलिपुत्र का प्रबन्ध 30 सदस्यों का एक आयोग करता था। चंद्रगुप्त का राजभवन मेगस्थनीज ने चंद्रगुप्त के राजमहल को शानदार बताया है। उसने कहा है कि वो पहले जिस भी किसी राजा के राजमहल में गया है वो सब के सब चंद्रगुप्त के राजमहल के सामने फीके नज़र आते हैं। महल के स्तंभों पर सोने की बेलें चढ़ी हुई थी जिन पर चाँदी के पक्षियों को सजाया गया है। महल के चारों और बड़े-बड़े बाग और साफ पानी के तलाब थे। तलाबों में मछलियां तैरा करती थी। खाने के लिए सोने-चाँदी के बर्तनों का प्रयोग होता था। नक्काशी के काम से सुसज्जित मेज और कुर्सियाँ बहुत शानदार थी।

3) सेना के बारे में

मेगस्थनीज़ कहता है कि सेना के प्रबंध के लिए 30 अधिकारी नियुक्त थे जो 5-5 की टुकड़ी में 6 विभागों में बंटे हुए थे। पहला विभाग नौसेना का था। दूसरा विभाग सेना को रसद पहुँचाता था और परिवहन आदि के कार्य संभालता था। तीसरा विभाग पैदल सेना का था। चौथा घोड़सवार सेना, पाँचवा युद्ध-रथों का और छठा विभाग हाथियों से संबंधित था। पैदल सेना का हथियार था- तीर-कमान। ये कमानें सैनिक के कद के बराबर हुआ करती थीं। पैदल सैनिक के पास तीन हाथ लंबी एक तलवार भी होती थी। घुड़सवार दो बरछे और एक छोटी ढाल रखते थे।

4) राज्य के लोग के बारे में

मेगस्थनीज़ ने भारत की जनता को 7 वर्गों में बांटा था। पहले वर्ग में दार्शनिक आते थे। ये संख्या में कम थे,लेकिन इनका स्थान अन्य वर्गों से ऊँचा था। दूसरा वर्ग किसानों का था। तीसरा वर्ग गड़रियों का था। चौथा वर्ग कारीगरों का था। इनमें से कुछ हथियार बनाते थे और कुछ खेती उपकरण। पाँचवा वर्ग सेना का था। छठा वर्ग उन अधिकारियों का था जो देशभर की जाँच-पड़ताल और प्रबंध करते थे। सांतवा वर्ग सभासदों का था जो लोगो के सम्बन्ध में विचार-विमर्श और चर्चा करते थे। राजा इन्हीं लोगों से सलाह लिया करता था।

मेगस्थनीज के अनुसार समाज में सात वर्ग थे-

i) दार्शनिक                                ii) कृषक                                           iii)शिकारी और पशुपालक,

iv) व्यापारी और शिल्पी                 v) योद्धा,                                vi)निरीक्षक तथा                                                               vii) मंत्री।

मेगस्थनीज ने ब्राह्मण साधुओं की प्रशंसा की है। उसके अनुसार भारतीय यूनानी देवता डियोनिसियस तथा हेराक्लीज की पूजा करते थे। वस्तुतः इससे शिव तथा कृष्ण की पूजा से तात्पर्य है

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