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कलिंग युद्ध के कारण, घटनाएँ व परिणाम(causes, events and results of kaling yudh in hindi)

 

कलिंग युद्ध के कारण, घटनाएँ परिणाम(causes, events and results of kaling yudh )



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कलिंग युद्ध के कारण (Causes) :

कलिंग युद्ध की घटनाएँ (Events of kaling yudh)

कलिंग के युद्ध के परिणाम या प्रभाव (RESULTS OF EFFECTS OF THE KALINGA WAR)

अशोक ने अपने राज्याभिषेक के बाद अपने पिता एवं पितामह की दिग्विजय की नीति को जारी रखा। उसने मगध साम्राज्य का विस्तार किया तथा विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने की नीति का पालन किया। राजतरंगिणी के अनुसार अशोक कश्मीर का प्रथम मौर्य सम्राट था। उसी ने कश्मीर घाटी में श्रीनगर की स्थापना की। इससे कुछ विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि अशोक ने सर्वप्रथम कश्मीर को जीता तथा इसे मगध साम्राज्य में मिलाया परंतु इस विजय की पुष्टि राजतरंगिणी के अतिरिक्त किसी अन्य साक्ष्य से नहीं होती।

अशोक के शिलालेख नं. XIII में वह स्वयं कहता है कि, “उसकी एकमात्र विजय कलिंग की ही थी।" इस शिलालेख से पता चलता है कि अशोक ने अपने शासनकाल के आठवें वर्ष में (261 ई.पू.) कलिंग की विजय प्राप्त की। प्राचीन कलिंग प्रदेश संभवतः आधुनिक उड़ीसा का राज्य था। अशोक के 13वें शिलालेख से इस युद्ध के कारणों एवं परिणामों का ज्ञान होता है।

कलिंग युद्ध के कारण (Causes) :

(i) साम्राज्यवादी नीति :- साम्राज्यवादी होने के कारण अशोक अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहता था। उसके साम्राज्य के समीप कलिंग ही एक ऐसा राज्य था जो स्वतंत्र होने के साथ-साथ शक्तिशाली भी था।

(ii) मगध की सुरक्षा (Safety of Magadh) ;- कलिंग राज्य नन्द काल में मगध साम्राज्य का ही एक भाग था, परन्तु नन्दवंश के पतन के बाद यह स्वतंत्र हो गया था। अशोक के समय कलिंग एक शक्तिशाली राज्य था। मेगस्थनीज ने कलिंग की शक्तिशाली सेना का विवरण दिया था जिसमें 60,000 पैदल सैनिक, 1000 घुड़सवार तथा 700 हाथी थे। निश्चित तौर पर अशोक के समय तक इस सेना में और वृद्धि हो गई होगी। अतः उसकी निरंतर बढ़ती शक्ति मौर्य साम्राज्य के लिए खतरा उत्पन्न कर रही थी जिसको कुचलना अशोक के लिए आवश्यक था। डॉ. डी.आर. भण्डारकर लिखते हैं कि, “ऐसा प्रतीत होता है कि कलिंग उसके राज्यरूपी शरीर में कांटे के समान था। इसलिए सुरक्षा तथा स्थिरता के लिए कलिंग को विजय करना तथा साम्राज्य में राजनीतिक एकता स्थापित करना आवश्यक था तथा यही अशोक ने किया।

(iii) दक्षिण भारत से सीधा संपर्क (Direct contactwith South India) :- डॉ. रोमिला थापर का कहना है कि, "कलिंग युद्ध का वास्तविक कारण यह था कि अशोक दक्षिण भारत की ओर जाने वाले जल तथा स्थल दोनों मार्गों को अपने अधीन करना चाहता राज्य था।

(iv) व्यापार में बढ़ोत्तरी के लिए (For increase in Trade) :- कुछ का मानना है कि अशोक ने अपने व्यापार की बढ़ोत्तरी के लिए कलिंग पर आक्रमण किया क्योंकि जलमार्ग से दक्षिण-पूर्वी देशों में आसानी से जाया जा सकता था परंतु यह कोई प्रबल मत प्रतीत नहीं होता, क्योंकि चन्द्रगुप्त व्यापार को बहुत महत्त्व देता था तथा यदि ऐसा होता तो वह (चन्द्रगुप्त) इसे पहले ही अपने साम्राज्य में मिला लेता।

(v) पिता की पराजय का बदला लेना (Revenge of Father's defeat) :- डॉ. भण्डारकर का मत है कि जब बिन्दुसार ने चोल तथा पाड्य राज्यों पर आक्रमण किया तो तब कलिंग नरेश ने मौर्य सेना पर पीछे से आक्रमण कर उन राज्यों की सहायता भी की। इसलिए अशोक ने अपने पिता की पराजय का बदला लेने के लिए यह आक्रमण किया।

(vi) नागजाति के दमन के लिए (For crashing the Naga Tribe) :- तिब्बती लेखक तारानाथ का कहना है कि समुद्र तट पर रहने वाले नाग नाम के डाकू अशोक के राज्य में लूटपाट करते रहते थे। ये लोग कलिंग के रहने वाले थे। अतः अशोक नाग जाति का दमन करना चाहता था। निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि कलिंग पर विजय प्राप्त करने का प्रमुख उद्देश्य साम्राज्य विस्तार की भावना ही रहा होगा।

कलिंग युद्ध की घटनाएँ (Events of kaling yudh)

अपने शासन काल के आठवें वर्ष में अर्थात् 261 ई.पू. में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण कर दिया। कलिंग का युद्ध तथा उसके परिणामों के विषय में अशोक के 13वें शिलालेख से विस्तृत सूचना प्राप्त होती है। दुर्भाग्यवश किसी की साक्ष्य से हमें कलिंग शासक का नाम ज्ञात नहीं होता है। यह युद्ध बड़ा भीषण था तथा इसमें भयंकर रक्तपात तथा हुआ होगा। यह युद्ध चार मास तक चला। तेरहवें शिलालेख में इस युद्ध के परिणामों का निम्नलिखित उल्लेख है, “इसमें एक लाख 50 हजार व्यक्ति बंदी बनाकर निर्वासित कर दिये गये, एक लाख लोगों की हत्या हुई तथा इससे कई गुना अन्य कारणों से नष्ट हो गये। अन्त में अशोक विजयी हुआ था। कलिंग को मगध साम्राज्य में मिला लिया गया तथा इसे साम्राज्य का पांचवाँ प्रान्त नरसंहार बनाया गया।

कलिंग के युद्ध के परिणाम या प्रभाव (RESULTS OF EFFECTS OF THE KALINGA WAR)

कलिंग के युद्ध का अशोक के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। युद्ध में हुए नरसंहार तथा वहाँ की जनता के कष्टों को देखकर अशोक का हृदय द्रवीभूत हो गया। युद्ध की भीषणता से अशोक का मन कांप उठा तथा उसने युद्ध की नीति को सदैव के लिए त्याग दिया तथा 'दिग्विजय' के स्थान पर 'धम्म विजय' को अपनाया।डॉ. हेमचन्द्र राय चौधरी ने लिखा है कि, "कलिंग का युद्ध अशोक के जीवन में एक मोड़ साबित हुआ.और भारत तथा सम्पूर्ण विश्व के इतिहास पर बड़ा ही महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला।

1. मौर्य साम्राज्य का विस्तार (Extent of the Empire) :- कलिंग की विजय के पश्चात् मौर्य साम्राज्य की सीमाओं में वृद्धि हुई। अशोक ने अपने पिता से एक विशाल साम्राज्य उत्तराधिकार में प्राप्त किया था, परंतु कलिंग विजय के पश्चात् राज्य की सीमा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में अरब सागर तथा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में मैसूर तक विस्तृत हो गई। कलित साम्राज्य का पांचवां प्रांत बना तथा इस प्रदेश की राजधानी तोषाली बनाई गई।

(ii) दिग्विजय के स्थान पर धम्म विजय (Adopting the Political Dhamma Vijay instead of Digvijay) :- कलिंगके युद्ध के बाद अशोक ने युद्ध की नीति को सदैव के लिए त्याग दिया तथा दिग्विजय के स्थान पर 'धम्म विजय' को अपनाया।डॉ. आर.के. मुखर्जी ने लिखा है कि, “युद्ध के भयानक प्रभावों ने अशोक के चरित्र में क्रांति उत्पन्न कर दी।'' कलिंग युद्ध ने नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट से अशोक की अन्तरात्मा को तीव्र आघात पहुंचा। युद्ध की भीषणता का अशोक पर गहरा प्रभाव पड़ा। नीलकंठ शास्त्री के अनुसार, “अशोक ने युद्ध की नीति को सदा के लिए त्याग दिया और दिग्विजय के स्थान पर धम्म विजय  की नीति को अपनाया।"

(iii) अशोक के व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव (Impact on Personal Life of Ashoka) :- कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक के व्यक्तिगत जीवन तथा व्यक्तित्व में गहरा परिवर्तन आया। युद्ध से पहले जहां अन्य राजाओं की तरह वह ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करता था। शिकार खेलता था, मांस खाता था तथा भोग-विलास में डूबा रहता था। युद्ध के बाद उसकी नीति में परिवर्तन आया। उसने ऐश्वर्य एवं भोग-विलास का परित्याग कर दिया तथा जनता को अपनी santan समान मानने लगा।

(iv) अशोक की प्रशासनिक नीति में परिवर्तन (Change in Administrative Policy) :- इस युद्ध के बाद अशोक की प्रशासनिक नीति में भी परिवर्तन आया। पड़ोसी देशों के साथ भी उसने शांति एवं मित्रता की नीति अपनाई। शांति, मित्रता एवं सहयोग उसकी विदेश नीति के स्तम्भ बन गये। अशोक ने धौली तथा जौगढ़ शिलालेखों से उसकी शांति की नीति का प्रमाण मिलता है। सीमांत जातियों को आश्वासन दिया गया कि उन्हें सम्राट से कोई भय नहीं करना चाहिए। उन्हें राजा के साथ व्यवहार करने से सुख ही मिले कष्ट नहीं। राजा उन्हें यथाशक्ति क्षमा करेगा, वे धम्म का पालन करें।"

(v) बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लेना (Adoption of Buddhism) :- कलिंग युद्ध के बाद चण्ड अशोक' ‘धर्माशोक बन गया। उसकी युद्ध नीति परिवर्तित हो गई तथा उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया। डॉ. थामस तथा भण्डारकर का मानना है कि अशोक नकलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था, वह इसका उत्साही प्रचारक भी बन गया। डॉ. भण्डारकर ने अशोक के आठवें शिलालेख का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि अब बौद्ध धर्म के लिए परिश्रम तथा प्रयत्न करने लगा है। परंतु डॉ. रोमिता थापर ने कलिंग युद्ध के एकदम बाद नाटकीय रूप से अशोक द्वारा बौद्ध को स्वीकारने वाले मत का खंडन किया है।

(vi) लोक कल्याणकारी कार्य (Public welfare work):-  कलिंग के युद्ध के बाद अशोक ने अपनी सारी शक्ति की जनकल्याणकारी कार्यों में लगा दिया। उसने लोगों के सुख तथा सुविधा के लिए साम्राज्य में सड़कें बनवाई, सड़कों के दोनों तरफ वा लगवाए, पीने के पानी का प्रबंध किया, मनुष्यों एवं पशुओं के लिए औषधालय खोले, कुएं खुदवाए गए, विश्राम गृहों का निर्माण करवाया गया तथा राज्य की तरफ से अनाथ व बेरोजगार लोगों को भोजन एवं कपड़ों की व्यवस्था करवाई।

(vii) धम्म की स्थापना (Establishment of Dhamma) :- कलिंग युद्ध के उपरांत अशोक में मानवोचित धर्म एवं नैतिकता का उदय हुआ तथा उसने जनता के नैतिक स्तर को ऊपर उठाने के लिए धम्म की स्थापना की। धम्म में वृद्धि सभी धर्मों के अच्छे सिद्धांतों का समावेश था तथा इसके माध्यम से अशोक अपनी प्रजा जिसे वह अपनी संतान समान समझने लगा था, वे वर्तमान या। एवं आगामी जीवन जो सुधारना था। धम्म को लोकप्रिय बनाने व के लिए अशोक ने स्वयं अपने जीवन में इन सिद्धांतों का पालन किया तथा इन्हें स्तम्भों पर अंकित करवाया।

(viii) सैनिक अयोग्यता :- कलिंग के युद्ध के पश्चात् अशोक ने युद्ध नीति का त्याग कर दिया तथा अंहिस की नीति का पालन किया। इसका मौर्य इसका मौर्य सेना पर कुप्रभाव पड़ा। काफी दिनों तक युद्ध न होने के कारण मौर्य सेना की वीरता, निपुणता आदि गुणों का स्थान भोग-विलासिता ने ले लिया। फलस्वरूप अशोक के उत्तराधिकारियों के समय यह सेना यूनानी आक्रमणों का सामना करने में विफल रही l

सम्राट अशोक का मूल्यांकन तथा इतिहास में स्थान

अशोक ने केवल भारतीय में वरन् विश्व इतिहास में अपना गौरवपूर्ण स्थान रखता है। वह ऐसा महान् शासक था जिसने नागरिकों की भौतिक एवं नैतिक उन्नति के लिये यथा सम्भव साधन जुटाये। राधाकुमुद मुखर्जी के अनुसार, “सम्पूर्ण इतिहास में कोई भी राजा ऐसा नहीं हुआ जिसकी तुलना अशोक  से की जा सके।

 

सम्पूर्ण राज्य में बौद्ध धर्म को फैलाने की दृष्टि से वह इजराइल के डेविड और सोलोमैन के समान था। राज्य विस्तार और शासन-प्रणाली के क्षेत्र में उसकी तुलना सोलोमैन से ही की जा सकती है। अन्त में खलीफा उमर और सम्राट अकबर भी उसकी श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

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