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सम्राट कनिष्क का जीवन परिचय (Biography of Samrat Kanishka in hindi)

 

सम्राट कनिष्क का जीवन परिचय (Biography of Samrat Kanishka)



Content

कुषाण (THE KUSHANS)

कनिष्क (KANISHKA)
           
आरम्भिक जीवन (Early Life)-

                सिंहासनारोहण (Accession)-

            कनिष्क की विजयें (Conquests of Kanishka)-

कनिष्क का चरित्र तथा मूल्यांकन 

कुषाण (THE KUSHANS)

मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात् भारत पर आक्रमण करने वाली विदेशी जातियों में कुषाणों का स्थान प्रमुख है। इन्होंने न केवल भारत में विशाल साम्राज्य की स्थापना करके राजनीतिक एकता प्रदान की अपितु कला, साहित्य एवं धर्म के विकास में भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस कारण भारतीय इतिहास में इस वंश का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। कुषाण कौन थे? इस विषय में विद्वानों में तीव्र मतभेद हैं। एफ.डब्ल्यू. टामस के अनुसार कुषाण शकों अथवा सीथियनों कीएक शाखा थी। हुल्स व केनेडी आदि विद्वान् कुषाणों को तुर्की नस्ल से संबंधित बताते हैं, परन्तु आधुनिक कुषाण लोग यूची जाति की एक शाखा थे। ये लोग उत्तर पश्चिम चीन के कानूस प्रान्त में रहते थे। 150 ई.पू. के आसपास इनके पड़ोस में रहने वाली दूसरीबर्बर जाति हुंगन्नु ने इन पर आक्रमण किया तथा इनको चीन से निकाल दिया। प्रो. एन.एन. घोष का विचार है कि जब इन लोगोंने मध्य एशिया में बसना शुरू किया तो वहाँ के तुर्की खानाबदोशों ने इनको वहाँ से भी खदेड़ दिया। इन्होंने आक्सस नदी पार कीतथा बैक्ट्रिया के एक भाग में बस गये। यहाँ आकर इन्होंने खानाबदोशी लीवन छोड़ दिया व अपना राजनैतिक संगठन बनाया। यहाँ वे पांच श्रेणियों में बंट गये। धीरे-धीरे प्रथम सदी ई.पू. में इनकी शाखा कुएई-सुआंग का सरदार कुजुल केडफिसस ने अन्य चार शाखाओंको परास्त कर अपनी प्रभुता स्थापित कर ली। डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल का मानना है कि इसी के नाम पर कुषाण साम्राज्य स्थापित हुआ तथा उसके वंशज कुषाण कहलाने लगे। स्टेनकोनो इन्हें ईरानी नस्ल के तुर्क मानते हैं। डॉ. बी. एन. पुरी ने भी इनका समर्थन किया है, परन्तु अधिकांश विद्वान् चीनी इतिहासकारों से सहमत हैं।

कनिष्क (KANISHKA)

विम कैडफिसिस की मृत्यु के बाद कनिष्क कुषाण वंश का शासक बना। वह भारत के कुषाण राजाओं में सबसे शक्तिशाली सम्राट था। विम कैडफिसिस व कनिष्क के बीच क्या सम्बन्ध था। इस विषय में कोई उचित जानकारी नहीं मिलती है। कनिष्क एक महान् विजेता, कुशल शासन प्रबंधक तथा बौद्ध धर्म का संरक्षक था। डॉ. आर.एस. त्रिपाठी के अनुसार, “उसमें चन्द्रगुप्त जैसी सैनिक योग्यता तथा अशोक जैसा धार्मिक उत्साह था।" डॉ. बी.एन. पुरी ने लिखा है कि, “कनिष्क का शासक बनना कुषाण साम्राज्य की उन्नति के लिए एक उल्लेखनीय घटना है। अनेक अभिलेखों, स्वर्ण एवं ताम्र मुद्राओं तथा बौद्ध साहित्य के आधार पर हम उसके इतिहास का पुनर्निर्माण करते हैं।

आरम्भिक जीवन (Early Life)-कनिष्क की उत्पत्ति, वंश तथा प्रारम्भिक जीवन अंधकारपूर्ण है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि पूर्ववर्ती कैडफिसिस राजाओं के साथ उसका संबंध था अथवा नहीं। डी.सी. सरकार ने लिखा है कि कनिष्क कुषाणों की किसी एक शाखा का प्रतिनिधित्व करता था, जो भारत में अपना भाग्य बनाने का प्रयास कर रहे थे और इस प्रयास में उन्हें सफलता भी मिली। डॉ. बी. ए. स्मिथ के अनुसार कनिष्क कैडफिसिस द्वितीय का पुत्र नहीं था। उसके पिता का नाम वाजहिस्का था एवं वह छोटी यूचीशाखा का था। इस शाखा के लोग कोयन में निवास करने लगे थे। जबकि उसके पूर्वाधिकारी बड़ी यूची शाखा से संबंधित थे। स्टेनकोनो ने भी कनिष्क को छोटी यूची शाखा का बताया है, परन्तु प्रो. पी.सी. बागची ने इस मत का खंडन किया है। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि कनिष्क विम कैडफिसिस के अधीन प्रान्तीय शासक था तथा उसने विम की मृत्यु के पश्चात् कुषाण साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। कुछ विद्वान् कनिष्क तथा कैडफिसिस प्रथम एवं द्वितीय को एक ही वंश का मानते हैं। इस प्रकार कनिष्क का प्रारम्भिक जीवन पूर्णतया अनुमानों पर ही आधारित है।

सिंहासनारोहण (Accession)-कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि भारतीय इतिहास का सर्वाधिक विवादास्पद प्रश्न रहा है। आज भी इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ भी कहना कठिन है। फ्लीट, कनिंघम डाउसन तथा फ्रोके का मत है कि कनिष्क 58 ई.पू. के में सिंहासन पर बैठा। डॉ. मार्शल तथा स्मिथ के अनुसार कनिष्क 125 ई. के आसपास सिंहासन पर बैठा। डॉ. रमेशचन्द्र मजूमदार के अनुसार कनिष्क 248 ई. में गद्दी पर बैठा तथा उसने त्रैकुटक-कलचुरि-चेदि संवत का प्रारम्भ किया था। आर. जी. भण्डारकर कनिष्क के राज्य रोहण की तिथि 278 ई. रखते हैं। फरग्यूसन, टामस, बैनर्जी, रैप्सन, डॉ. डी.सी. सरकार आदि विद्वानों के अनुसार कनिष्क 78 ई.पू. में राजसिंहासन पर बैठा तथा उसने उस संवत की स्थापना की जो बाद में शक संवत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। डॉ. आर.एस. त्रिपाठी तथा प्रो. एम.एन. घोष ने भी इस मत का समर्थन किया है।

कनिष्क की विजयें (Conquests of Kanishka)-कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रतापी शासक था। वह एक महान विजेता था जिसने कैडफिसिस द्वितीय से प्राप्त साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार किया। उसने भारतीय प्रदेशों पर विजय प्राप्त करने के अतिरिक्त समकालीन पार्थिया एवं चीनी साम्राज्यों से भी युद्ध किये। उसकी विजयों का विवरण इस प्रकार है-

1. मगध विजय (Conquest of Magadh) -  लेखों से पता चलता है कि कनिष्क ने कनिष्क का साम्राज्य मगध पर आक्रमण किया था तथा (120 से 162 ई.) पाटलिपुत्र को जीता था। पुरातात्विक साक्ष्यों से भी इस विजय की पुष्टि अधीनस्थ राज्य होती है। सारनाथ से कनिष्क के तीसरे UIIT कनिष्क का साम्राज्य वर्ष का अभिलेख प्राप्त हुआ है। बिहार तथा बंगाल से कनिष्क के सैकड़ों सिक्के भी मिले हैं। चीनी स्रोतों के आधार पर कहा जाता है कि जब कनिष्क ने पाटलिपुत्र के राजा पर आक्रमण करके उसे बुरी तरह पराजित कर दिया तथा हर्जाने के रूप वर्मा में एक बहुत बड़ी रकम की मांग की। परन्तु इसके बदले में मगध के शासन बंगाल की में कनिष्क को अश्वघोष, बुद्ध का खाड़ी भिक्षा पात्र तथा एक विचित्र मुर्गा भेंट किया। पाटलिपुत्र, कुमुहार तथा वैशाली की खुदाई से भी कुषाणों के सिक्के मिलना इस विजय की पुष्टि करते हैं। कनिष्क अश्वघोष को अपने साथ ले आया। उसकी योग्यता एवं व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही कनिष्क ने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया  था !

2. कश्मीर विजय (Conquest of Kashmir)- कल्हण की राजतरंगिणी के आधार पर माना जाता है कि कनिष्क ने कश्मीर पर विजय प्राप्त की थी। बौद्ध साक्ष्यों के आधार पर कहा जाता है कि कनिष्क को कश्मीर घाटी बहुत पसन्द थी। इस कारण भी उसने कश्मीर विजित किया था। गर्मी का मौसम वह यहीं व्यतीत करता था। आधुनिक बारामूला के निकट कनिष्क ने कनिष्कपुर एक नगर भी बसाया था। कश्मीर में ही उसने बौद्धों की चौथी महासभा का आयोजन भी किया था। इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि निःसन्देह कश्मीर कनिष्क के राज्य का अंग था।

3. सिन्ध की विजय (Conquest of Sind)-सुई-बिहार अभिलेख से ज्ञात होता है कि कनिष्क अपने शासनकाल के 11वें वर्ष में सिन्ध पर आक्रमण किया तथा इस पर अपना अधिकार कर लिया। इसी वर्ष का एक लेख जेद्दा से भी मिला है। कपिशा  पर कनिष्क के अधिकार की पुष्टि ह्वेनसांग भी करता है।

4. पश्चिमी क्षत्रपों से युद्ध (War against Western Kshatrapas)-कनिष्क के शिनकोट शिलालेख से पता चलता है कि कनिष्क ने उज्जैन तथा मालवा के क्षत्रपों के साथ युद्ध किया था। इस युद्ध के अन्त में शकों द्वारा कनिष्क की अधीनता स्वीकार कर ली गई। सांची के एक लेख में वास नाम किसी राजा का उल्लेख मिलता है जो संभवतः मालवा एवं उज्जैन में कनिष्क का उपराजा था, परन्तु कुषाण वंश के पतन के पश्चात् शकों ने मालवा एवं उज्जैन पर पुनः अधिकार कर लिया। बाद में इसे चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने पराजित किया।

5. पार्थियों से युद्ध (War against Parthian)- चीनी साहित्य से पता चलता है कि पार्थिया के शासक ने कनिष्क पर आक्रमण किया था। इसका कारण था कि पार्थिया का शासक बैक्ट्रिया पर अधिकार करना चाहता था क्योंकि बैक्ट्रिया व्यापारिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान था। अतः पार्थियों के शासक ने कनिष्क पर आक्रमण किया परन्तु कनिष्क ने उसे पराजित कर  दिया।

6. चीन से युद्ध (War against China)-कनिष्क की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता उसका चीनी अभियान था। भारतीय राज्यों  पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् उसने विदेशी शासकों से भी लोहा लिया। इस अभियान के निम्न कारण थे-

(i) कनिष्क के पूर्व शासक कैडफिसिस द्वितीय ने चीन के शासक से युद्ध किया था, परन्तु चीनी सेनापति पानचाओ ने उसे बुरी तरह हराया था। उसने चीन के शासक को कर देना भी स्वीकार कर लिया था, परन्तु कनिष्क ने यह कर देना बंद कर दिया तथा वह अपने पूर्वजों की पराजय का बदला भी लेना चाहता था।

(ii) कुषाणों के समकालीन ह्वेनसांग (चीनी) के शक्तिशाली शासकों ने चीनी तुर्किस्तान को जीत लिया था तथा इस प्रकार अनेक साम्राज्य की सीमाएँ कुषाण साम्राज्य की सीमाओं से मिलने लगी थीं। कनिष्क अपने पड़ोस में एक शक्तिशाली साम्राज्य को सहन नहीं कर सकता था।

iii) कनिष्क एक महत्त्वाकांक्षी सम्राट था। वह अपने राज्य का विस्तार भी करना चाहता था।

कनिष्क का चरित्र तथा मूल्यांकन  (CHARACTER AND ESTIMATE OF KANISHKA)

प्राचीन भारत के इतिहास में कुषाण सम्राट कनिष्क का स्थान महत्त्वपूर्ण है। वह एक महान् विजेता तथा साम्राज्य निर्माता था। अपनी सैन्य सफलताओं से वह समुद्रगुप्त का स्मरण करता है। वह एक सफल प्रशासक भी था। उसने अपने विशाल साम्राज्य को विभिन्न प्रान्तों में बांटकर एक कुशल प्रशासन की स्थापना की थी। उसके समय में भारतीय सभ्यता का विदेशों में प्रचार व प्रसार हुआ। इस बारे में डॉ. राय चौधरी लिखते हैं कि, “कनिष्क के वंश ने भारतीय सभ्यता के लिए मध्य एवं पूर्वी एशिया का द्वार खोल दिया। विजेता एवं शासक प्रबंधक के साथ-साथ कनिष्क एक विद्वान् तथा विद्वानों का आश्रयदाता भी था। वह कला एवं साहित्यनुरागी था। बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान करने के कारण उसकी तुलना अशोक से की जाती है। बौद्ध धर्म का सच्चा अनुयायी होते भी वह अन्य धर्मों का समान रूप से आदर करता था। इस प्रकार कनिष्क के चरित्र में अनेक गुणों का मिश्रण था। डॉ.  आर. एस. त्रिपाठी ने उचित ही लिखा है कि, "निःसन्देह कनिष्क भारत के कुषाण सम्राटों में सबसे अधिक आकर्षक व्यक्तित्व है।  वह एक महान् विजेता तथा बौद्ध धर्म का आश्रयदाता था। उसमें चन्द्रगुप्त जैसी सैनिक योग्यता तथा अशोक जैसा धार्मिक उत्साह था।

कनिष्क के व्यक्तित्व के गुणों का विवरण इस प्रकार है-

1. महान् विजेता (Great Conquerory ) :- कनिष्क एक महान् विजेता था। उसकी सैनिक सफलताएँ समुद्रगुप्त का स्मरण कराती है। उसने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण युद्ध किये एवं सफलताएँ प्राप्त की। उसने अपने बाहुबल से भारत के एक विशाल भू-भाग पर अपनी विजय पताका फहराई। उसने अपने पूर्वजों से विरासत में जो राज्य प्राप्त किया था | उसने न केवल रक्षा की थी अपितु उसकी सीमा पर विस्तार भी किया। यद्यपि चीनी सेनानायक पान-चाओ के हाथों वह एक बार पराजित हुआ परन्तु उसने कुछ समय बाद अपने अपमान का प्रतिशोध लेकर अपनी महत्त्वाकांक्षा को सन्तुष्ट किया। उसने भारत के बाहर यारकन्द, काशगर तथा खोतान प्रान्तों पर भी अधिकार कर लिया था।  कनिष्क के साम्राज्य की सीमाएँ उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में विन्ध्याचल तक (उज्जैन तक) तथा पूर्व में पाटलिपुत्र से लेकर पश्चिम में हेलमन्द नदी  (पूर्वी अफगानिस्तान) तक विस्तृत थी। इस प्रकार एक विजेता क रूप में कनिष्क एक सफल शासक था।

2. कुशल प्रशासक (An Efficient Administrator) :- एक सेनानायक एवं कुशल विजेता के साथ-साथ कनिष्क एक उच्चकोटि का शासन प्रबंधक भी था। मौर्यों के पतन के बाद उसने सर्वप्रथम उत्तरी भारत में शान्ति एवं सुव्यवस्था स्थापित की थी। कनिष्क ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य को अनेक प्रान्तों (स्ट्रे-पीज) में बांटकर 'क्षत्रप शासनव्यवस्था' की स्थापना की थी। सारनाथ लेख से पता चलता है कि खरपल्लान मथुरा का महाक्षत्रप तथा वनस्फर बनारस के समीप पूर्वी प्रान्तों का क्षत्रप था। यद्यपि कनिष्क एक तानाशाह की तरह राज्य की सभी शक्तियों का स्वामी था परन्तु उसके प्रशासन का मुख्य उद्देश्य प्रजा का कल्याण करना था। कनिष्क के समय में लोगों की आर्थिक दशा काफी अच्छी थी। राज्य में शान्ति एवं व्यवस्था होने के कारण व्यापार काफी विकसित हुआ। चीन, रोम आदि देशों के साथ भारत के व्यापारिक संबंध थे। कनिष्क के साम्राज्य की राजधानी पुरुषपुर  (पेशावर) थी, जो अफगानिस्तान से सिन्धु घाटी को जाने वाले प्रमुख राजमार्ग पर बसा हुआ था।

3. धर्म परायण शासक (Patron of Religion) :- कनिष्क द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, इसलिए उसे दूसरा अशोक भी कहा जाता था। कनिष्क द्वारा बौद्ध धर्म के लिए किया जाने वाला सबसे महान कार्य चौथी बौद्ध का आयोजन करना था। इस समिति के बाद उसने धर्म में समयानुसार परिवर्तन करके बौद्ध धर्म को मरने से बचा लिया। उसने अनेक बौद्ध विद्वानों को राजकीय संरक्षण भी प्रदान किया। उसने अपने राज्य में अनेक स्थानों पर बौद्ध मठों, विहारों एवं चैत्यों का निर्माण करवाया। उसने अशोक की भांति उत्तरी एशियाई देशों में धर्म के प्रचार के लिए प्रचारक भी भेजे।  कनिष्क ने अपने शासनकाल में महात्मा बुद्ध तथा बोधिसत्वों की सुन्दर मूर्तियां बनवाईं। उसके शासनकाल में अनेक प्रसिद्ध विद्वानों ने बौद्ध धर्म का साहित्य भी लिखा। यद्यपि कनिष्क ने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया था, परन्तु उसने धार्मिक सहिष्णुता का परिचय दिया। उसके विशाल साम्राज्य में विभिन्न धर्मों के अनुयायी निवास करते थे। कनिष्क के सिक्कों से उसकी धार्मिक सहिष्णुता का परिचय होता है। उसके सिक्कों पर यूनानी, ईरानी तथा हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र मिलते हैं। उसकी राजसभा में भी सभी धर्मों के गुणवान् व्यक्ति विद्यमान थे। इस प्रकार धार्मिक दृष्टिकोण से कनिष्क सम्राट अशोक के समान ही उदार था।

4. महान् निर्माता (Great Bulider)-कनिष्क अशोक की भांति एक महान् निर्माता था। बौद्ध साहित्य में कनिष्क के अनेक निर्माणों का उल्लेख मिलता है। उसने तक्षशिला में सिरकप तथा बारामूला के निकट कनिष्कपुर नामक नगरों की स्थापना की। कनिष्क ने तक्षशिला, मथुरा, पेशावर एवं बनारस में अनेक मठों, विहारों एवं चैत्यों का निर्माण करवाया। उसने अपनी राजधानी पुरुषपुर  400 फुट ऊंची तथा 13 मंजिलों की एक मीनार का निर्माण करवाया तथा उसके ऊपर लोहे का एक बड़ा छत्र स्थापित करवाया। यह मीनार पेशावर का चैत्यया शाहजी की ढेरी' के नाम से प्रसिद्ध है। चीनी यात्री फाहियान तथा हेनसांग व मुस्लिम यात्री अलबेरुनी ने भी इस चैत्य की प्रशंसा की थी। डॉ. बी.ए. स्मिथ ने निर्माण कार्यों में कनिष्क की समानता अशोक से की है।

5. साहित्य एवं कला का संरक्षक (Patron of Art and Literature) :- कनिष्क विद्वान् एवं विद्वानों का आश्रयदाता था। उसने अपने दरबार में अनेक प्रसिद्ध विद्वानों, लेखकों, दार्शनिको एविज्ञानिकों को संरक्षण प्रदान किया। कला एवं साहित्य के का इतिहास (प्राराभक काल से 1200 ई. तक)|193  संरक्षण के रूप में उसकी तुलना महमूद गजनवी' से की गई है। इस संबंध में डॉ. राय चौधरी ने लिखा है कि, “कुषाण युग साहित्यिक  क्रियाशीलता का युग था, इसका प्रभाव हमें अश्वघोष, नागार्जुन तथा अन्य विद्वानों की कृतियों से प्राप्त होता है।कनिष्क की राजसभा में अश्वघोष, नागार्जुन, पार्श्व, वसुमित्र, चरक, आर्यदेव, अजीलियस आदि प्रसिद्ध विद्वान् व्यक्ति रहते थे। इन विद्वानों ने अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचना की। कला के क्षेत्र में कनिष्क की चिरस्मरणीय देन गांधार शैली है। गांधार शैली के अन्तर्गत बुद्ध मूर्तियों के साथ-साथ बोधिसत्वों की मूर्तियों का भी निर्माण हुआ। कनिष्क अपनी मुद्राओं के लिए भी विख्यात है। उसकी स्वर्ण मुद्राओं से पता चलता है कि उसके समय देश सम्पन्न था तथा व्यापार अति विकसित था। कला के पुनरुद्धारक के रूप में कनिष्क की तुलना फारस के अब्बासी शासकों से भी की जाती है।

उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कनिष्क का महान् विजेता, कुशल शासन प्रबंधक, महान निर्माता, कला एवं साहित्य का संरक्षक तथा धार्मिक सहिष्णु शासक था। उसके शासन काल में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विदेशों में प्रचार हुआ। निःसन्देह वह भारत के महान शासकों में से एक था। भारतीय इतिहास में उसकी तुलना अशोक, समुद्रगुप्त एवं अकबर जैसे महान् सम्राटों से की जा सकती है। डॉ. आर. डी. बनर्जी ने लिखा है कि, “कनिष्क भारतीय इतिहास में अत्यन्त दिलचस्प व्यक्तित्व वाला व्यक्ति है। उसमें चन्द्रगुप्त जैसी सामरिक योग्यता और अशोक की धार्मिक ललक समाहित थी।"

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