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बौद्ध धर्म के शीघ्र फैलने के कारण(REASONS FOR THE RAPID SPREAD OF BUDDHISM in hindi)

 

बौद्ध धर्म के शीघ्र फैलने के कारण पर प्रकाश डालें(HIGHLIGHT THE REASONS FOR THE RAPID SPREAD OF BUDDHISM)

बौद्ध धर्म का फैलाव बड़ी तेजी से हुआ. इसके अनुयायियों की संख्या सर्वत्र बड़ी तेजी से बढ़ी. यह धर्म भारत की सीमाओं में नहीं बंधा रहा बल्कि दूसरे देशों में भी फैला. भारतीय धर्मों के इतिहास में इसे एक प्रकार की क्रांति कहना अनुचित न होगा. इस धर्म की शिक्षाएं कर्मकाण्ड से हट कर सरल तथा जनता की भाषा में ही कही गई. जाति-पाति एवं लिंग के आधार पर भेदभाव का यह धर्म विरोधी था| भगवान् बुद्ध के प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं जीवन का जनता पर बहुत प्रभाव पड़ा. बौद्ध धर्म के शीघ्र फैलने के कारण निम्न थे

1.हिन्दू धर्म में फैली बुराइयाँ :- उस समय ब्राह्मण धर्म में अनेक बुराइयाँ थीं. ऊँच-नीच की भावना, कर्मकांड, बड़े-बड़े यज्ञ, बलि एवं खर्चीले धार्मिक उत्सवों के कारण आम लोगों में हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा नहीं रही . बौद्ध धर्म ने ब्राह्मणों की विशेष स्थिति का विरोध किया. जाति-पाति के भेदभाव की निंदा की तथा स्त्री और पुरुष को समान अधिकार देते हुए सभी को संघों में प्रवेश की आज्ञा दी. इससे सभी साधारण लोग इस धर्म के प्रति आकर्षित हुए |


2.मगध राज्य का ब्राह्मणों द्वारा तिरस्कार :- भारत के जिन भागों में वैदिक प्रथाओं का प्रचलन नहीं था. उन प्रदेशों के लोगों ने बौद्ध धर्म को बड़े उत्साह एवं जोश से स्वीकार कर लिया मगध राज्य को ब्राह्मण धर्म के ठेकेदार तिरस्कार की नजर से देखते थे. बौद्ध धर्म कट्टर ब्राह्मणों का विरोधी था. इसलिए मगध के लोगों ने ऐसे धर्म को स्वीकार करना अपना सौभाग्य सभझा जो ब्राह्मणों के अधिकार और श्रेष्ठता को चुनौती दे रहा था. मगध को पवित्र आर्यवर्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) से बाहर समझा जाता था. बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने ब्राह्मणों के इस गलत विचार और अंध-विश्वास का विरोध किया. परिणामस्वरूप मगध की जनता से बौद्ध धर्म को स्वीकार करने के साथ-साथ इसे फैलाने में हृदय से मदद दी. पुरानी परम्परा आज भी मौजूद है : उत्तरी बिहार के लोग अपने यहाँ के मृतक का दाह-संस्कार गंगा के दक्षिण अर्थात् मगध में करना पसंद नहीं करते.

3.बौद्ध धर्म की शिक्षाएं या उपदेश जनभाषा में :- ब्राह्मण धर्म के सभी प्रमुख ग्रंथ संस्कृत में थे तथा ब्राह्मण लोग सभी धार्मिक क्रियाओं में इसी भाषा का प्रयोग करते थे. साधारण जनता संस्कृत भाषा को न तो बोलती थी और न समझ सकती थी. उनकी भाषा तो पाली थी. उधर दूसरी ओर बौद्ध धर्म के सभी उपदेशों का प्रचार जनता की भाषा पाली में ही किया गया. इस भाषा की सभी लोग समझ सकते थे. इससे बौद्ध धर्म का प्रचार शीध्र हो सका |

4.सिद्धांतों और शिक्षाओं की सरलता :- गौतम बुद्ध ने जो भी सिद्धांत और शिक्षाएं जनता के सामने रखी वह बहुत जटिल और कठोर नहीं थी. उन्होंने आम बातों को तर्क के आधार पर जनता के सामने रखा. इन सभी सिद्धांतों को जनता बड़ी आसानी से समझ सकती थी. संसार दु:खों का घर है और दु:खों से छुटकारा पाने एवं निर्वाण को प्राप्त करने के लिए अष्टांग मार्गों को अपनाने के लिए बुद्ध ने जोर दिया. मध्यम मार्ग और नैतिकता के नियम आदि सरल शिक्षाओं को सभी लोगों ने सहज रूप से अपनाना शुरू कर दिया.

5. गौतम बुद्ध का व्यक्तित्व :- गौतम के आदर्श व्यक्तित्व ने इस धर्म के प्रचार में बड़ी सहायता दी. उन्होंने राजघराने के सुखों को लात मारी थी. बुद्ध ने दुराचरण का सामना सदाचरण तथा घृणा का सामना प्यार से किया. अगर किसी व्यक्ति ने उन्हें गालियां तक भी दीं तो भी वे अपने स्वभाव में क्रोध नहीं लाये. कहा जाता है कि एक बार एक अज्ञानी व्यक्त ने उन्हें गालियाँ दीं. बुद्ध शान्त होकर चुपचाप उन्हें सुनते रहे. जब उस व्यक्ति का गालियाँ देना बन्द हुआ तो बुद्ध ने उससे पूछा: मेरे पुत्र, यदि कोई दान को स्वीकार नहीं करता तो उस दान का क्या होगा?” उस व्यक्त ने उत्तर दिया, “यह दान देने के इच्छुक व्यक्ति के पास ही रहेगा.तब गौतम बुद्ध ने कहा, “मेरे पुत्र, मैं तुम्हारी गालियों को स्वीकार नहीं करता.दया की मूर्ति बुद्ध ने सभी का हृदय छू लिया. वह शूद्र-ब्राह्मण स्त्री-पुरुष को समान समझते थे. उनकी कथनी और करनी में कोई भेद नहीं था.

6.जाति-भेद और ऊँच-नीच के विरोधी :- गौतम बुद्ध ने उस समय के सामाजिक वर्ण भेद को नहीं माना. उन्होंने जाति-पाति के बन्धन काट डाले. सभी के लिए निर्वाण का मार्ग खोल दिया. बौद्ध धर्म के ग्रन्थों का अध्ययन और धार्मिक स्थानों के दर्शन शूद्र कर सकते थे. निम्न वर्ण के लोगों मे बौद्ध धर्म को वरदान समझकर अंगीकार कर लिया.

7.संघ तथा विहारों की स्थापना :- संघ व्यवस्था और विहारों ने भी बौद्ध धर्म को शीघ्र फैलाने में मदद दी. संध में हर किसी को जाति या लिंग के भेदभाव के बिना शामिल होने को आज्ञा दी. इन विहारों में रहने वाले सभी भिक्षुओं को सादगी और सदाचरण से रहने को सौगन्ध खानी पड़ती थी. इन विहारों में शिक्षा का भी प्रबंध था. यहाँ दूर-दूर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे. गौतम बुद्ध के विचार, सिद्धान्त दर्शन का प्रचार भी दूर-दूर तक फैलता गया.

8.राज्यों द्वारा संरक्षण :- बौद्ध धर्म का शीघ्र एवं तीव्र गति से दूर-दूर तक फैलने का कारण उसे राज्याश्रय प्राप्त होना भी था. बुद्ध निर्वाण के 200 साल बाद प्रसिद्ध मौर्य सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के बाद बौद्ध धर्म स्वीकार किया. उसका भारत के अधिकांश भागों पर अधिकार था. उसने न केवल बौद्ध धर्म को स्वीकार ही किया बल्कि इसके प्रचार के लिए प्रचारकों को भी भेजा. अशोक के बाद सम्राट कनिष्क (कुशाण वंश का प्रसिद्ध शासक) ने भी इस धर्म के प्रचार के लिए बहुत कोशिश की. उसने बौद्ध धर्म के दोनों सम्प्रदायों में एकता स्थापित करने के लिए सम्मेलन बुलाया. उसने मध्य एशिया में इस धर्म को फैलाने में सहायता दी .

9.भिक्षुओं का मोक्ष :- बौद्ध भिक्षुओं ने बड़े जोश और सच्ची लगन से इस धर्म का प्रचार किया. उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों को जनता तक पहुंचाया. बौद्ध धर्म आज भी कई देशों में जीवित है जैसे श्रीलंका, बर्मा, तिब्बत, चीन और जापान परन्तु यह धर्म अपनी जन्मभूमि भारत में प्राय: लुप्त हो गया है. हमारे देश में इसके अनुयायियों की संख्या बहुत ही कम है.

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