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जैन धर्म बुद्ध धर्म की तुलना में अधिक लोकप्रिय नहीं हुआ कारण

 

जैन धर्म बुद्ध धर्म की तुलना में अधिक लोकप्रिय नहीं हुआ. कारण बताएँ.

(EXPLAIN WHY JAINISM COULD NOT BECOME AS POPULAR AS BUDDHISM.)

 

हाँ, यह सत्य है कि जैनमत बुद्धमत की तुलना में अधिक लोकप्रिय नहीं हुआ. इसके लिए निम्नलिखित कारण गिनाये जा सकते हैं.

1.ब्राह्मण धर्म से स्पष्ट पृथकता का अभाव

जैन धर्म का जन्म ब्राह्मण धर्म की फैली बुराइयों की प्रतिक्रिया का फल था तो भी जैन धर्म ने अपने आपको ब्राह्मण धर्म से स्पष्ट रूप से पृथक् नहीं किया. इसलिए आम जनता बड़ी संख्या में इसकी ओर नहीं झुकी.

2.प्रचार भावना का अभाव :-  इस धर्म में प्रचार भावना का अभाव था. जैन मत के प्रचारकों ने इस धर्म को फैलाने के लिए अधिक प्रयत्न नहीं किये. जैन संघ बौद्ध संघों की तरह सुसंगठित नहीं थे. महावीर जब तक जीवित रहे तब तक यह सम्प्रदाय संगठित रहा. उनके निर्वाण के बाद इस धर्म के अनुयायियों में उत्साह कम हो गया.

3.घोर तपस्या :- अति हर वस्तु की बुरी है. जैन धर्म घोर तपस्या के जीवन पर अधिक बल देता था. इस धर्म में तपस्या करते-करते सूखकर कांटा हो जाना, कई दिनों तक अन्न और जल का ग्रहण न करना, तपस्या करते-करते प्राण त्याग देना अच्छा समझा जाता था. यह सब सर्वसाधारण लोग नहीं कर सकते थे. इसलिए घोर तपस्या के सिद्धांत ने जैन धर्म को अधिक लोकप्रिय नहीं होने दिय|


4.अहिंसा पर जोर:- अहिंसा पर बहुत जोर देने से भी इस धर्म के प्रचार में रुकावट आई. उस समय के ब्राह्मण एवं क्षत्रिय लोगों के लिए अहिंसा का पालन करना सम्भव न था. वे क्रमशः बलि प्रथा का समर्थन तथा युद्ध में अपनी वीरता प्रदर्शन करना अपने जीवन का अनिवार्य अंग समझते थे. शुद्रों में भी अधिकांश लोग मांसाहारी थे. जबकि जैन लोगों ने पानी छानकर पीना एवं मुंह पर पट्टी बांधकर चलना जैसे कार्य किये. आम व्यक्ति के लिये इस हद तक अहिंसा के सिद्धान्त का पालन करना कठिन था. इसलिए केवल वैश्य वर्ण के लोगों ने ही बड़ी संख्या में इस धर्म को अपनाया.

5.अधिक राजकीय सहायता का न मिलना :- जैन धर्म का अधिक लोकप्रिय न होने का एक कारण यह भी था कि इसे बौद्ध धर्म की तरह अनेक शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं का संरक्षण नहीं मिल सका. जब तक महावीर जीवित रहे तब तक जैन धर्म अंग, अवन्ति, मगध, मल्‍ल ओर लिच्छिवी राज्यों तक ही सीमित रहा. उनकी मृत्यु के बाद भी कुछ राज्यों का आश्रय जैन धर्म को मिलता रहा. अजातशत्रु के उत्तराधिकार उदायिन ने भी इस धर्म को अपनाया था. बाद की एक परम्परा के अनुसार कर्नाटक में जैन धर्म को बढ़ाने का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य को दिया जाता है. किन्तु दूसरे स्रोतों से इस की पुष्टि नहीं होती. अजातशत्रु, उदायिन और कलिंग के राजा खारवेल आदि, राजाओं की सहायता का काल बहुत थोड़ा ही रहा.

6.पाटलिपुत्र में एक परिषद् को असफलता:- महावीर की मृत्यु के 200 वर्षों बाद मगध में एक भयंकर अकाल पड़ा जो बारह वर्षों तक चलता रहा. इसलिए जीवन रक्षा के लिए अनेक जैन आचार्य दक्षिण भारत में चले गए. अकाल समाप्त होने पर जब यह लोग मगध लौटकर आये तब स्थानीय जैनों से उनका मतभेद हो गया. दक्षिण में वापस आए लोगों ने दावा किया कि अकाल के दिनों में भी उन्होंने धार्मिक नियमों का वहां पूरी तरह पालन किया है. जबकि मगध में बाकी जैन लापरवाह हो गए हैं. इन मतभेदों को दूर करने के लिए पाटलिपुत्र में एक परिषद् का आयोजन किया गया. दक्षिण से वापस आये जैनियों ने इस सभा का बहिष्कार किया तथा उसके निर्णयों को नहीं माना. इससे जैन धर्म में फूट बढ़ती चली गई. मगध के जैनियों ने अपने को श्वेताम्बर और दक्षिण के जैनियों ने अपने आपको दिगंबर कहना शुरू कर दिया. दिगंबर नग्न मूर्तियों की पूजा करते हैं तथा इनके मुनि भी नग्न रहते हैं. ये लोग कट्टर और पुराने सिद्धांतों का पालन करते हैं. दूसरी ओर, श्वेताम्बर अपनी मूर्तियों को श्वेत वस्त्र पहनाते हैं तथा इनके मुनि भी श्वेत वस्त्र धारण करते हैं, ये स्वयं को पार्श्वनाथ के अनुयायी समझते हैं. यह दिगम्बरों की तरह अधिक कठोर जीवन एवं तपस्या में विश्वास नहीं रखते. जैन धर्म के विभाजन ने उसकी लोकप्रियता को कम कर दिया.

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